असंभव सत्य | प्रदीप जिलवाने
असंभव सत्य | प्रदीप जिलवाने

असंभव सत्य | प्रदीप जिलवाने

असंभव सत्य | प्रदीप जिलवाने

नींद मेरे लिए एक चुंबकीय रास्ता है
जिससे होकर मैं तुम तक पहुँचता हूँ
और तुम्हारी इजाजत के बगैर तुम्हें बेपरवाही से छू लेता हूँ

वे अनंत दुआएँ जो मैं आसमान की ओर अक्सर उछालता हूँ
अँधेरे में झिलमिलाती हैं और मेरे सपनों में तैरती हैं
सुबह उठकर जिन्हें मैं अपने बिस्तर से बहुत आहिस्ता समेटता हूँ
और तिरोहित कर आता हूँ नदी के पवित्र जल में

अपनी बेचैनियों को मैं रात की खामोशियों में
अक्सर कहीं छोड़ आता हूँ
और बदले में तुम्हारी हँसी के हरेपन का जंगल
मल जाता है मेरी देह पर तुम्हारे प्रेम का रंग

समय की झरी हुई पत्तियों के प्रयाण-गीत
आत्मा के अनंत गहरे समंदर में कहीं सस्वर कुलबुलाते हैं
और मेरी नींद को पवित्रता से भर देते हैं

वे समस्त अदेखी यात्राएँ जो मैंने नींद में तुम्हारे साथ की हैं
मेरे जीवन का इकलौता संचय है
और मैं इस असंभव सत्य से कुछ भी खर्चना नहीं चाहता।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *