अपना गेहूँ | असलम हसन अपना गेहूँ | असलम हसन उधार का आटा आँचल में ले करघर लौटती है वह शाम को अक्सरठंडा चूल्हा पल भर जल करसो जाता फिर आँखें बंद करसूनी आँखों में सपना बुन करवह भी सोती है पहर भररात भर उन आँखों का सपनासींचता रहता है गेहूँ अपना