अँधेरी
अँधेरी

मैं ही जलती हूँ
मैं ही बुझती हूँ
कभी अगरबत्ती की सुगंध बन जाती हूँ
कभी धुँआ उगलती चिमनी
अँधेरे में हो या उजाले में
मैं ही तो हूँ
और कोई नहीं
कोई नहीं…

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