उन्‍होंने वह पत्रिका बंद कर मेज पर रख दी। वे जानते हैं, एक क्षण में चपरासी को अंदर बुला कर पानी या कुछ और माँगना चाहिए। इस पत्रिका में जो कुछ देखा है, उनके मन में जो कुछ प्रवेश पा रहा है, यह सब कुछ ठीक नहीं हो रहा। पर वह क्षण इतने समय में ही हाथ से निकल गया, वे इस स्थिति के मोह को भंग न कर सके।

विदेश से आनेवाली चित्र-प्रधान पत्रिका है। इस बार भारत के वन्‍य पशुओं पर विशेषांक निकाला है। बिलकुल बीच का पृष्‍ठ खोल कर देखा था तो हाथ, आँखें, शरीर की सारी इंद्रियाँ और आत्‍मा सब जैसे थम कर वहीं पर केंद्रित हो गई थीं। नीचे पढ़ा – चीता।

चित्र में बैठे हुए उस चीते ने इनकी ओर देखा, इनकी आँखों में उसने आँखें डाल दीं। और तब ही उनके मन के अंदर यह विचार कौंध गया कि हाँ, मुझे इसको मारना है। यही है जिसको मैं कब से तलाशता आ रहा हूँ।

उन्‍होंने पत्रिका फिर खोली। अब किसी प्रकार का सेंसेशन, अजनबी अनुभूति उनके शरीर अथवा मन में नहीं हो रही। इससे बिलकुल तादात्‍म्‍य स्‍थापित हो गया है। दोनों ने पहचान के एक ही स्‍तर पर पहुँच कर एक-दूसरे से परिचय कर लिया है।

वे जानते हैं कि इन दिनों शिकार के लिए जाना कितना कठिन है। अगले सप्‍ताह ही तो इन फैक्‍टरियों के डायरेक्‍टरों की मीटिंग है और वे इन सब कारखानों के मैनेजिंग डायरेक्‍टर हैं। यहाँ से कुछ दिनों के लिए भी अनुपस्थित होना असंभव है। फिर यह कारण सुन कर कि उनको एकाएक चीते का शिकार करने की सूझ गई है, कितनी हँसी लोग करेंगे। चाहे उनकी स्थिति यहाँ पर इतनी दृढ़ है कि कोई भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। वे जो चाहें कर सकते हैं। जिनका साठ प्रतिशत धन इन कारखानों में लगा है, उनकी लड़की से इनका विवाह हुआ है। पर वे जाएँगे नहीं।

फिर चित्र में बैठे चीते को देखा। उन्‍हें स्‍पष्‍ट आभास हुआ कि वह चीता थोड़ा-सा हिला है, आसपास लगे छोटे-छोटे पेड़-पौधे उसकी गति से धमक गए हैं, हिल गए हैं। चीते ने गर्दन टेढ़ी करके उनकी ओर देखा है। और फिर वह उनकी आत्‍मा के अंदर प्रवेश कर गया है। हाँ, जाना है, बहुत जल्‍दी ही। देर करने का कोई कारण नहीं है।

वे बहुत शीघ्र निर्णय करने के लिए प्रसिद्ध हैं। इसी गुण के कारण ही चालीस वर्ष की कम आयु में इतने कारखानों के मैनेजिंग डायरेक्‍टर बन गए हैं। उन्‍होंने फोन कर के अपने निजी सचिव को बुलाया। वह आदमी बड़े दबे पाँव कमरे में आया और चुपचाप बैठ गया। इसे देख कर सदा यह आभास होता है कि यह आदमी नहीं कोई बिल्‍ली है, जो बिना आहट, दबे-पाँव, एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान पर सतत घूमती रहती है। उसकी पीली-पीली आँखें इस समय बहुत अस्थिर-सी लग रही हैं। वह जानता है कि इस असमय में किसी विशेष बात के लिए ही उसे बुलाया गया है। वह बिल्‍कुल एक बिल्‍ली की तरह अंग-प्रत्‍यंग समेट कर बैठा है, जैसे कोई खिंची हुई स्प्रिंगदार तार है, जो छूटते ही एक झपाटे के साथ छलाँग लगा देगी।

वे सचिव को उस चित्र को दिखाते हैं। बिलकुल थोड़े शब्‍दों में बताते हैं, वे चीते का शिकार करना चाहते हैं, य‍ह प्रबंध इसी सप्‍ताह होना चाहिए।

सचिव के शरीर के स्प्रिंग और भी कस जाते हैं। यह क्‍या रहस्‍य है, मिस्‍ट्री है, जो उसकी समझ में नहीं आ रहा है। उसकी पीली आँखें इस समय बिलकुल स्थिर हैं। उसका शरीर इनके शरीर की प्रत्‍येक अनुभूति को ग्रहण करने की चेष्‍टा कर रहा है। उसका यह शरीर अपना थोड़े है, मन तो सदा इनके अंदर प्रवेश किए रहता है। वह तो इनका जीवन ही जीता है, और जो भी बड़े से बड़ा निर्णय ये करते हैं उसका पूरा भागीदार सचिव का शरीर और मन भी तो होता है। उसे इसी बात का तो अधिक वेतन मिलता है। वह दफ्तर का कोई भी काम-काज नहीं करता। उसे तो प्रत्‍येक स्थिति को भोगना है, हर उस संघर्ष में अपने मन को, शरीर को डालना है जिसमें से ये गुजरते हैं।

यही बात आज उन्‍होंने ऐसी कह दी है जिसको न उसका शरीर स्‍वीकार कर रहा है और न आत्‍मा ग्रहण कर रही है। इन्‍हें चीते के शिकार से क्‍या मतलब?

वह अपनी डायरी निकाल कर देखता है कि आनेवाले पंद्रह दिनों में इनका क्‍या-क्‍या कार्यक्रम है? हाँ, कहीं जाने-आने का प्रश्‍न ही नहीं उठता। सब दिन किसी न किसी मीटिंग में उन्‍हें जाना है।

सचिव को नोट-बुक पढ़ते देख कर उनके मन में विचार आता है कि उनका सारा जीवन उसकी नोट-बुक में कैद है। किसी को उनका जीवन-वृत्‍त लिखना हो तो इस नोट-बुक से वह सब कुछ प्राप्‍त कर सकता है। उन्‍हें तो कभी-कभी यह भ्रम होता है कि सचिव ने अपनी डायरी में यह भी लिख रखा होगा कि इस-इस रात को वे अपनी पत्‍नी के पास सोएँगे।

वे सचिव को बताते हैं कि सारी मीटिंगें स्‍थगित कर दी जाएँ। वह सब से पहले शिकार को जाएँगे। सचिव देख रहा है… उन्‍होंने अपना चश्‍मा उतार कर मेज पर रख दिया है। दोनों कमानियों को उनके हाथ एक-दूसरे के समीप ला रहे हैं, फिर पीछे कर रहे हैं। जब उनका मन किसी स्थिति विशेष से गुजर कर एक निर्णय पर पहुँच रहा हो, तो ऐनक की कमानियाँ इस सारी प्रक्रिया का जीता-जागता दर्पण हैं। फिर उनके हाथों ने कमानियों के दोनों सिरों को मिला दिया। सचिव समझ गया – जाने का निर्णय अडिग है। प्रत्‍येक निर्णय करते समय ऐसा होता है। इस सिग्‍नल को केवल वही समझता है। कई बार वह यह बात देख चुका है। वह डायरी में लिखे सारे कार्यक्रमों पर लाल पेंसिल ले कर खींच देता है।

सारी रात बिस्‍तरे में उनके साथ वह चीता सोया रहा और थोड़ी-थोड़ी देर पश्‍चात उसकी दहाड़ से वे काँप-काँप जाते रहे।

यहाँ पहुँचे उन्‍हें दो दिन हो चुके है। इस प्रदेश के पर्यटन अधिकारी ने सब प्रबंध कर दिए है। ऐसे पर्यटक प्रायः यहाँ आते रहते है, देश से, विदेश से, जो चीते का शिकार करने के पश्‍चात लौट जाते हैं, अधिकारी प्रसन्‍न हैं कि अपने देश के लोग भी अब इस ओर झुक रहे हैं। उनके साथ एक पेशेवर शिकारी को लगा दिया गया है। पहले दिन ही जब वे लोग जीप में जंगल में से जा रहे थे तो सामने से एक हिरन उछल कर भागा। शिकारी को उन्‍होंने आदेश दिया कि जीप को रोक कर अथवा धीमी करके उसकी गति भंग न की जाए। फिर बड़े सहज भाव से उस बीस किलोमीटर प्रति घंटा चल रही जीप में उन्‍होंने कंधे से बंदूक रखी और मात्र एक गोली से हिरन को मार दिया। शिकारी निश्चिंत हो गया। अब इनकी बहुत देखभाल उसे न करनी पड़ेगी। ये तो बहुत अनुभवी हैं। प्रायः पर्यटक तो बस मरे हुए चीते के साथ फोटो खिंचवा कर अपने अहेरी होने की सनद प्राप्‍त करके ही प्रसन्‍न हो जाते हैं…

जंगल के उस भाग में लकड़ी का मकाननुमा बीस फुट ऊँचा मचान बना है, जो एक प्रकार से मकान ही है। रस्‍सी की सीढ़ी के द्वारा उस पर चढ़ कर यह सीढ़ी ऊपर खींच ली जाती है। ऊपर सर्चलाइट भी लगी है। इस मचान के पास ही छोटा-सा तालाब है, जहाँ आजकल की इस जान-लेवा गर्मी में प्रत्‍येक प्रकार के पशु का आना निश्चित है। फिर जब वह पशु सर्चलाइट के प्रकाश के घेरे में बद्ध हो जाता है, तो उसका वहाँ से जीवित निकलना असंभव है। यदि अनाड़ी पर्यटक की गोली से वह बच भी जाए तो पेशेवर शि‍कारी यह काम पूरा कर देता है।

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वे, सचिव और शिकारी तीनों एक महँगी शराब पी रहे हैं। वह शिकारी इनके साथ आए सचिव की ओर देखता ही नहीं। यह आदमी कुछ बोलता क्‍यों नहीं। इसकी पीली आँखें उसे सदा ऊँघ रहे हिंसक पशु की याद दिलाती हैं। वे बड़े हौले से इन दोनों को बताते हैं कि आज चीता अवश्‍य आएगा। जब इन दोनों की प्रश्‍नवाचक दृष्टि को देखते हैं, तो कहते हैं – रात सपने में चीता स्‍वयं आ कर उन्‍हें बता गया है कि आज रात आमना-सामना होना अवश्‍यंभावी है। सचिव बिना किसी विवाद उनकी बात को स्‍वीकार कर लेता है। वह पेशेवर शिकारी एकदम भयभीत हो जाता है – यह दोनों आदमी कितने रहस्‍यपूर्ण हैं। इन दोनों के बीच वह क्‍या रहस्‍य है, जिसे केवल वे ही जानते हैं और जिसके माध्‍यम से दोनों बिना बातचीत के एक-दूसरे की बात को समझ जाते हैं।

पेड़ों के पीछे से चाँद दबे पाँव उभर आया है। सारा जंगल पीला-पीला हो रहा है। मचान से थोड़ा हट कर एक पेड़ से बँधा बकरा आर्तनाद करता है। सारा वातावरण बोझीला हो जाता है, पशु तो सहज ही आनेवाली घटना का आभास पा जाते हैं। फिर हाँका लगानेवाले भी सूचना दे चुके हैं कि चीता इसी क्षेत्र में है। बकरे की रोने की आवाज उसे आकर्षित करेगी।

यह पर्यटक भी तो कितने अधिकारपूर्ण ढंग से बता चुका है कि चीता आज आएगा, जैसे कि दोनों ने रात को यहाँ मिल लेने का समय और स्‍थान निश्चित किया हो।

उनका शरीर एकदम चौकन्‍ना हो जाता है। शरीर के अंदर जो ग्रहण केंद्र है, उसमें संकेत आरंभ हो जाते हैं। चीते की चेतना के स्‍तर पर उनका मन तथा शरीर का प्रत्‍येक अवयव कार्य कर रहा है। हाँ, वह आ रहा है, आ रहा है। उन्‍हें पता है, उसके आने का आभास केवल उन्‍हें मिला है। इन दोनों को इसका कुछ पता नहीं है। वे इन्‍हें बताते हैं कि वे नीचे उतरना चाहते हैं। शिकारी रोकता नहीं, क्‍योंकि वह इस चीते का स्‍वभाव जानता है। बहुत रात गए ही वह शिकार करने आता है। रस्‍सी की सीढ़ी नीचे लटकाई जाती है। सचिव साथ जाने के लिए हिलता है, तो वह उसे रोक देते हैं। आज तो उन्‍हें अकेले ही सामना करना है। शिकारी उनके हाथ में भरी हुई बंदूक थमा देता है।

वे नीचे पहुँच कर पेड़ से बँधे बकरे से कुछ दूर रुक जाते हैं। बकरा अब आर्तनाद करना बंद कर देता है। उसे इनके आने का आभास हो गया है। अभी तक चीते का कहीं अता-पता नहीं। पर वे जानते हैं कि वह कहीं आसपास है।

हाँ, चीता बकरे से दूर एक पेड़ के पीछे खड़ा सारी स्थिति का मजा ले रहा है। वह बकरे की ओर बड़ी अरुचि से देख रहा है। यह तो नहीं है, इससे तो मिलन की रात आज की रात नहीं है। पिछली दो रातों से वह जंगल-जंगल दहाड़ता फिर रहा है, क्‍या इसे मारने के लिए? यह बकरा उसका आखेट क्‍यों कर हो सकता है। मुलाकात होना तो किसी ‘और’ से निश्चित हुआ था। वह अपने सुंदर, शक्तिशाली शरीर को ढीला छोड़ देता है और ‘उस’ की प्रतीक्षा करना आरंभ कर देता है।

उनके मन के अंदर एक भयानक दहाड़ होती है। उनके शरीर की प्रत्‍येक मांसपेशी तन जाती है। मन के अंदर तो जंगल है, उसे दहाड़-दहाड़ कर चीता तले रौंदे डाल रहा है।

वह पेड़ के पीछे से निकल कर सामने आ जाते हैं। परे बैठे चीते का शरीर एक स्प्रिंग की तरह तन जाता है।

और एक ऊँची दहाड़ के साथ सारा जंगल काँप जाता है। पेड़ों की चोटियों पर बैठे परिंदे शोर करते हुए उड़ जाते हैं। पेड़ काँप जाते हैं। मचान पर बैठे सचिव शिकारी काँप जाते हैं। चाँद का मुँह और भी पीला पड़ जाता है। वह रात्रि जो थोड़ी देर पहले स्‍तब्‍ध थी, काँप जाती है, अब साँस थामे इन दो अहेरियों के द्वंद्व युद्ध की मूक गवाह बन रही है।

ये चीते की ओर देख रहे हैं, वह इनकी ओर देख रहा है। कितना सुख मिल रहा हैं। अब अंदर जो जंगल है, वह बिल्‍कुल शांत हो गया है। उसे ‘वह’ अस्‍त-व्‍यस्‍त नहीं कर रहा है। चीते का पेट अब जमीन के साथ लग रहा है, उसका सारा शरीर सिमट कर मूल आकार से आधा हो गया है, अब क्षणांश में वह छलाँग लगा देगा।

और मचान पर बैठे उस पेशेवर शिकारी को अब इसी क्षण सत्‍य का पता चलता है कि यह जो आदमी नीचे खड़ा है, वह चीते पर गोली नहीं चला पाएगा। उसका शरीर, उसकी आत्‍मा इससे सामना होते ही अनुपस्थित हो गई है। मर गई है। वह अपनी दूरबीन लगी बंदूक को उठा कर वहीं मचान से निशाना साधता है।

वह क्षण बीत गया। चीते ने दूसरी भयानक गर्जना के साथ अपने शरीर के कसे स्प्रिंग को ढीला छोड़ दिया। उसका शरीर हवा में उछला। उन्‍होंने भी जोर की हुंकार मारी, और फिर उसका भयानक पंजा इनके कंधे को फाड़ता हुआ कमर तक आधे शरीर को चीर गया।

पेशेवर शिकारी की दूरबीन लगी बंदूक ने गर्जना की। गोली चीते के मस्तिष्‍क को फाड़ती हुई आर-पार हो गई और उसी समय एक अंतिम चिघाड़ के साथ उसने प्राण छोड़ दिए।

इतनी देर से, पेड़ से बँधा बकरा यह सारा नाटक देख रहा था। चुप था। और शायद वह बहुत भयभीत हो गया है, लगातार आर्तनाद किए जा रहा है। पेशेवर शिकारी और सचिव वहाँ पहुँच जाते हैं। बकरा आर्तनाद किए जा रहा है और उसकी आवाज सारे जंगल को घायल किए जा रही है। शिकारी की बंदूक फिर गरजती है और सब कुछ शांत हो जाता है।

वे अभी जिंदा हैं, पर शरीर से रक्‍त बहे जा रहा है। जीप तो ड्राइवर सुबह ही लाएगा। तब तक प्रतीक्षा करेंगे, तो इनकी मृत्‍यु हो जाएगी। पास का गाँव दो मील दूर है। वहाँ के डाकखाने से फोन करके शिकारी जीप और डाक्‍टर को बुलाएगा। पर इस सब में दो घंटे लग सकते हैं। शिकारी बड़े अभ्‍यस्‍त हाथों से अपने सिर की पगड़ी से उनका कंधा बाँध देता है। रक्‍त का बहाव थम जाता है। वह उन्‍हें उठा कर मचान पर ले जाता है। सचिव को कहता है कि उसके नीचे उतरने के बाद रस्‍सी की सीढ़ी को ऊपर खींच ले। वह गाँव से फोन करके लौट आएगा। घबराने की कोई बात नहीं। अब कोई पशु इधर न आएगा। सब को जंगल के माध्‍यम से इस घटना का पता चल गया होगा। और वह नीचे उतर जाता है।

सचिव शराब का आधा गिलास भर कर इनको पिलाता है। शायद इतनी तेज शराब के प्रभाव से उनका दर्द कुछ कम हो जाता है। वे आँखें खोलते हैं और सब से पहला प्रश्‍न उससे यह पूछते हैं कि फौलाद की वह भट्टी उस दिन क्‍या गर्म थी? एक क्षण में उसके शरीर का मांस, अस्थिपिंजर तक पिघल कर जल गया होगा। उसे कोई कष्‍ट भी महसूस नहीं हुआ होगा। सचिव ‘हाँ’ में सिर हिला देता है।

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अब उस अंदर के जंगल में बिल्‍कुल शांति है। उस अँधेरे को भेदती हुई कोई भी दहाड़ यहाँ से वहाँ टकरा नहीं रही है। वह सचिव की ओर देखते हैं। उसी रहस्‍यात्‍मक ढंग से वह उनकी बात समझ जाता है और बताता है कि हाँ, चीता भी मर गया है। उसे शिकारी ने मार दिया।

फिर उन्‍हें याद आती है अपनी पत्‍नी की, जिसकी एक टाँग है। एक टाँगवाली सीढ़ी पर चढ़ कर वह इतनी शीघ्र मैनेजिंग डायरेक्‍टर की पदवी तक पहुच सके हैं। उसे पता लगेगा, तो कैसे झटके से सिर हिला देगी। और बहुत होगा तो थोड़ी-सी और पी लेगी, थोड़ी-सी और बहक लेगी।

वह जर्मनी से उच्‍च तकनीकी शिक्षा प्राप्‍त करके आए थे। फैक्‍टरी में इंजीनियर लग गए थे। उस दिन रात गए एक मशीन से उलझे थे। तभी मालिक वहाँ आ गए थे। उसे इतनी देर तक काम करते देख हैरान हुए। आज के युग में तो दस मिनट अधिक काम करने पर लोग अतिरिक्‍त पैसा माँग लेते हैं। मालिक ने उससे पूछा तो उन्‍होंने बताया कि जब तक काम समाप्‍त न हो जाए, वह कैसे जा सकता है। मालिक चुप हो गए। वह आधा घंटा वहाँ खड़े रहे। उसने मशीन ठीक कर दी। मालिक उसे घर पर ही खाने के लिए साथ ले आए। और वहीं पर अपनी भावी पत्‍नी, उनकी बेटी से पहला परिचय हुआ। वह लँगड़ा कर चल रही थी। पता चला एक टाँग बचपन में किसी दुर्घटना में कट गई थी, अतः बनावटी है, लकड़ी की बनी है।

उन दिनों उनके जीवन का सब से बड़ा लक्ष्‍य था, अधिक से अधिक संपन्‍न बनना, अधिक से अधिक लोगों पर राज करना। शायद इस सबके पीछे वह हीन-भावना काम कर रही थी, जो बचपन अनाथालय में बीतने के कारण उनके मन में घर कर गई थी। मालिक की ओर से कुछ संकेत मिले और इस मुलाकात के एक महीने के अंदर ही उन्‍होंने उनकी लड़की से विवाह कर लिया।

तब उनका विचार था – औरत चाहे एक टाँगवाली हो, चाहे दो टाँगवाली, वह होती औरत ही है, और इस सब से कुछ अंतर नहीं पड़ता।

और यह साधारण इंजीनियर से फैक्‍टरी इंजीनियर और होते-होते दस वर्षों में इनकी सब फैक्टरियों के मैनेजिंग डाइरेक्‍टर बन गए।

कंधे में जोरों का दर्द उठा है। शरीर के प्रत्‍येक अंग में जैसे पिघला हुआ सीसा दौड़ गया है। उनके चेष्‍टा करने पर भी एक कराह निकल ही जाती है। सचिव उन्‍हें फिर से शराब देता है। कुछ सहारा मिलता है।

नहीं, वह गलत थे। एक टाँगवाली औरत में बहुत अंतर होता है। जून की भयानक गर्मी के दिन थे। उस जलती-तपती दोपहर में कोई परिंदा तक भी बाहर दिखाई न देता था। वे बड़ी तेज गति से अपनी लंबी विदेशी कार में वहाँ से गुजर गए। थोड़ा आगे जा कर उन्‍हें आभास हुआ जैसे किसी ने कार रोकने के लिए हाथ उठाया था। वह गाड़ी वापस लाए।

सचमुच बारह-तेरह साल की एक लड़की वहाँ खड़ी थी। गाड़ी पास पहुँचने पर उसने बड़ी शुद्ध और सलीकेदार अंग्रेजी में इनसे पूछा कि क्‍या वे उसे घर तक छोड़ देंगे। उसकी गाड़ी ड्राइवर लाया नहीं, शायद खराब हो गई है। वह आधे घंटे से अकेली यहाँ खड़ी प्रतीक्षा कर रही है। फिर उसकी कोठी की ओर किसी बस के जाने का मार्ग भी तो नहीं।

उन्‍होंने उसे कार में बिठा लिया। उस लड़की ने बड़ी आश्‍चर्यचकित आँखों से कार को देखा और उन्‍हें बताया कि इतनी बड़ी कार उसने पहली बार देखी है। वे बहुत खुश हुए।

लड़की ने बताया कि वह कान्वेंट में पढ़ती है। अगले वर्ष सीनियर कैंब्रिज की परीक्षा देगी। फिर उसने पिता का नाम बताया। अरे, उसके पिता तो इन्‍हें जानते हैं। क्‍लब में कई बार मुलाकात हुई है। इस सूचना को पा कर वह लड़की बहुत खुश हुई।

वह बार-बार अपना सिर झटक कर तराशे हुए बाल पीछे करती है। उसने स्‍कर्ट पहन रखी है और सच्‍चे मोतियों की तरह आबदार टाँगें आभा दे रही हैं। उन्‍होंने मोड़ काटा, तो लड़की जरा इधर को हो गई। उनका हाथ उसकी टाँग से छू गया और वे सकते में आ गए। उनके विवाह को बहुत वर्ष हो गए हैं। पत्‍नी के साहचर्य से ऐसा कभी कुछ नहीं हुआ। फिर आज यह क्‍या हो गया है। लगा – लरजती हुई आग का बहुत बड़ा शोला उनके शरीर में यहाँ से वहाँ, इधर से उधर लपक गया है। रक्‍त जैसे शरीर के कवच को फाड़ कर अभी शिरा-शिरा से बाहर बह जाएगा। पर उन्‍होंने उसको इन भावनाओं का जरा भी अनुमान न लगने दिया।

फिर उस लड़की ने पूछा कि क्‍या वे उसे कार का स्‍टीयरिंग पकड़ने देंगे। वह बताती है कि वह अपनी कार का स्‍टीयरिंग सँभाल लेती है। वे ‘हाँ’ कर देते हैं। लड़की आगे सरक आती है। अब उसकी टाँग इनकी टाँग पर चढ़ आती है। शैंपू किए बालों की सुगंध मस्तिष्‍क में धँसती चली जा रही है। उसे सँभालने के बहाने वे उसके एक कंधे को अपनी बाँहों मे घेर कर एक प्रकार से उसे अपने वक्ष के साथ लगा लेते हैं।

आग-आग। शरीर के पोर-पोर में, आँखों में, अंग-प्रत्‍यंग में एक भयंकर ज्‍वाला है कि प्रवेश किए जा रही है।

और यह क्‍या। वह लड़की भी अनजाने में जैसे इनके साथ सटी जा रही है। उसने अंग्रेजी फिल्‍में देखी हैं और उस समय उसके विभिन्‍न रोमांटिक दृश्‍य जी रही है। रक्‍त की पुकार को रक्‍त ने पहचान लिया है। वह ज्‍वाला उसमें भी प्रवेश कर गई है। यह सेंसेशन क्‍या सब किसी से बड़ी है। जिसके आगे इतनी आयुवाले, इतनी प्रतिष्‍ठावाले स्‍वयं असहाय हो गए हैं, उसका सामना यह दुर्बल छोटी लड़की क्‍या करेगी।

उनकी कोठी से गुजर कर ही उस लड़की के घर की ओर सड़क जाती थी। वे उसे सलाह देते हैं कि क्‍यों न पहले उसके घर कोकाकोला पी ली जाए। फिर वे उसे वहाँ छोड़ जाएँगे।

लड़की अब तक मंत्रमुग्‍ध हो चुकी है। उसके मस्तिष्‍क पर उस जलते हुए रक्‍त का अधिकार हो चुका है। वह मान जाती है।

उनके कमरे में कूलर लगा है। ऐसे महसूस होता है जैसे वह जलते मैदानों की लू से एकदम किसी पहाड़ी स्‍थान पर पहुँच गए हैं। वह फ्रिज खोलते हैं। कोकाकोला और बीयर की कई बोतलें अंदर ठंडी हो रही हैं। लड़की अपने आप सूचना देती है कि पापा लंच में उसे एक गिलास बीयर देते हैं। वह दो बोतलें खोलते हैं। सोफे पर उसके साथ बैठ जाते हैं। लड़की बड़ी जल्‍दी-जल्‍दी बीयर पी रही है। अपने दोनों हाथों से सिर के कटे हुए बाल ऊपर उठा कूलर के आगे सिर करती है। स्‍कर्ट में छोटे-छोटे आकार उभरते दिखाई देते हैं।

पिछले कितने मिनटों से उनका हाथ उसकी टाँग पर है। वह भयंकर आग फिर से जल उठती है। मस्तिष्‍क बार-बार खतरे की सूचना देता है। वे बार-बार उसकी बात को मानने की कोशिश करते हैं, पर रक्‍त की पुकार अधिक शक्तिशाली सिद्ध होती है।

लड़की पूरी बोतल खाली कर चुकी और अब उसकी ओर से भी शरीर का दबाव बढ़ रहा है। उसकी आँखें मुँद-सी गई हैं और…

दर्द फिर उठता है। अब वे जोर से कराहते हैं। सचिव उनके मुँह में फिर शराब डालता है और बताता है कि बस अब वह शिकारी डाक्‍टरी सहायता ले कर पहुँच ही रहा होगा…

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उन्‍हें जब होश आया था, तो सब कुछ समाप्‍त हो चुका था। वह लड़की मर गई थी क्‍योंकि उन्‍होंने अपने हाथों से उसका गला दबा दिया था। वह इस बात के पश्‍चात जीवित रह जाती तो…

हाँ, उन्‍होंने सचिव को फोन किया था। इसी क्षण वहाँ पहुँचने को कहा था। वे जानते हैं, सचिव पहले पुलिस में इंस्पेक्‍टर था। किसी रिश्‍वत के मामले में नौकरी से निकाल दिया गया था। मालिक ने अपनी लड़की से उनकी शादी की थी, तो एक प्रकार से दहेज में यह सचिव भी दिया था। कितने वर्षों से कैसे सफलतापूर्वक वह इनके जीवन का संचालन कर रहा है।

सचिव वहाँ आ गया, उसकी पीली आँखें बेतरह चमक रही हैं। वह सोफे पर मृत पड़ी लड़की को देखता है, उसके गले पर पड़े उँगलियों के ताजा निशान देखता है, नीचे फर्श पर फैले रक्‍त के छोटे-से घेरे को देखता है और सब कुछ समझ जाता है। इन्‍हें क्रोध आ रहा है कि वह कुछ पूछता क्‍यों नहीं? वह बडे़ अभ्‍यस्‍त ढंग से गीले कपड़े से फर्श साफ कर देता है। कार को बिल्‍कुल दरवाजे तक ले आता है और उस मृत लड़की को बड़ी फुर्ती से उठा कर कार के अंदर डाल देता है। उनसे पूछता है कि जब वे इस लड़की को यहाँ लाए तो किसी ने देखा तो नहीं? वे निश्‍चयपूर्वक बताते हैं कि उस समय सड़क बिलकुल निर्जन थी। सचिव संतुष्‍ट दिखाई देता है।

आगे की बात तो बिलकुल छोटी-सी है। वे कार में पिछले दरवाजे से फैक्‍टरी में पहुँचते हैं। लंच की छुट्टी होती है। उस बिजली की भट्टी में काम कर रहे कारीगर भाग कर कैंटीन में बिजली के पंखों की छत्रछाया में पहुँचते हैं। यह दोनों उस भट्टी तक पहुँच जाते हैं। सचिव उसी फुर्ती के साथ कार में से लड़की को उठा लाता है और उस बिजली की जलती हुई भट्टी में डाल देता है। एक क्षण में वह लोहे के सा‍थ पिघल जाती है। वे दोनों लौट आते हैं। कितने महीनों तक लड़की के इस प्रकार गुम हो जाने पर हल्ला मचा रहा, पर रहस्‍य पुलिस से न सुलझना था, न सुलझा।

कुछ दिनों के पश्‍चात जब वह अपनी पत्‍नी के साथ सोए, तो उन्‍हें पता चला कि दो टाँगोंवाली औरत और एक टाँगवाली औरत में अंतर होता है। पत्‍नी लेटते समय अपनी बनावटी टाँग उतार दिया करती थी। वह ठूँठ-सी टाँग उनकी टाँगों से लिपटने की चेष्‍टा कर रही है। वे मारे भय के चीख मारना चाह रहे हैं। वह टाँग ऐसी है, जैसे कोई ठंडा अजगर हो। उनको अपने घेरे में बाँध कर कुचल देगा, मसल देगा। वह चारपाई से उठ जाते हैं। पत्‍नी की दृष्टि से वह समझ जाते है कि इस औरत को पता चल गया है कि वे दो टाँगोंवाली औरत के साथ सो चुके हैं। और तब से वह अपनी पत्‍नी के साथ सोए नहीं। और तब से उनकी पत्‍नी बहुत शराब पीने लग गई हैं, बहुत बहकने लग गई हैं।

अब तो दर्द सहना कठिन हो रहा है। वे सचिव का हाथ पकड़ लेते हैं। उनके हाथ में आए पसीने से सचिव का हाथ गीला हो जाता है। वह इनका माथा पोंछता है, इनके मुँह में फिर शराब डालता है।

सारी बात कब स्‍पष्‍ट हुई थी? मरते समय एक क्षण के लिए उस लड़की ने कितना भयानक संघर्ष किया था। और उस दिन से वह जब भी अकेले होते थे, अकेले सोते थे, उनके अंदर कोई दहाड़ता रहता था।

तब उन्‍हें आभास हुआ कि उनकी आत्‍मा में एक काला स्‍याह जंगल उग आया है। इस भयानक अँधेरे में रात-रात भर कोई दहाड़ता है, चलता है। तो उसकी धमक से अंदर घाव ही घाव हो जाते हैं, सब कुछ क्षत-विक्षत हो जाता है।

उनके अंदर यह जो ‘कोई’ आ बैठा था, वह क्‍या है। कौन है। इसका ज्ञान तब हुआ, जब उस विदेशी पत्रिका में छपे चीते के उस चित्र को उन्‍होंने देखा। वह चीता वहाँ से उछला उनके अंदर जो ‘वह’ बैठा था उससे आ कर साक्षात्‍कार दिया। दोनों की जान-पहचान हो गई और वहीं उसी समय उन्‍हें निर्णय करना पड़ गया कि इससे तो द्वंद्व होगा, सामना होगा, जितनी शीघ्र हो, उतनी ही जल्‍दी मुक्ति मिल जाएगी। उन्‍होंने सचिव को सारे प्रबंध करने का आदेश दे दिया था।

शाम को उनका मन थोड़ा डाँवाडोल हुआ था। यह सब तो ठीक नहीं हो रहा। इतना सारा कामकाज छोड़ कर उनका शिकार के लिए जाना कहाँ तक उचित है। और तभी उन्‍हें स्‍पष्‍ट पता चला कि कोई आया है और चुपचाप उनके पास सोफे पर बैठ गया है। मन के अंदर बैठे ‘उस’ ने पहचान लिया कि यह वही चित्र में छपा चीता है। उस सफेद चीते ने कोकाकोला की एक बोतल ली, बीच में दो पाइप डाल कर बड़े इत्‍मीनान से पीता रहा। इनके अंदर बैठे ‘उस’ से बातचीत हुई। ‘उसने’ इस कोकाकोला पीते सफेद चीते को आश्‍वासन दिया कि पूर्व निश्‍चय के अनुसार उससे मिलने अवश्‍य आएगा। तब कहीं आ कर वइ उस सजी-सजाई बैठक से उठा था।

रात को सोए थे, तो उस जंगल के बीच कैसा भयंकर हाहाकार मच गया। बार-बार वह चीता दहाड़ता था। अहेरी – आखेट को पुकारता था। उन्‍हें आज पता चला कि हम तो अहेरी नहीं आखेट हैं। अहेरी तो वह है, जो सदा हमारी प्रतीक्षा करता है। उस क्षण के लिए थमा रहता है। जब उससे साक्षात्‍कार करना होता है। हम स्‍वयं चल कर उसके पास जाते हैं। प्रार्थना करते हैं… आओ हमें प्राप्‍त करो। हमें मुक्‍त करो। ओ रे अहेरी, अब और प्रतीक्षा न होगी।

उन्‍होंने उस समय उस चीते पर गोली क्‍यों नहीं चलाई? गोली वह चलाते। परंतु कैसे। अहेरी कौन था? फिर वह चीता कहाँ था, जिसने उनके ऊपर छलाँग लगाई थी? उसकी आँखें थीं? वह तो वहीं जंगली बिल्‍ली-सी हिंसक वह लड़की थी, जिसने उनके साथ कितना भयंकर संघर्ष किया था। जीवन में दो बार उसी भयंकर आनंद के प्राणों को जमा देनेवाले क्षण आए थे। पहली बार विजय उनकी हुई थी, दूसरी बार तो वह आखेट बन कर आए थे न।

अब लगता है बचना कठिन है। कुछ आवाजें आ रही हैं। सचिव बताता है, पहुँच रही जीप की आवाज है। और चेतना खोने से कुछ क्षण पूर्व उनके मन में यह हलका-सा विचार आता है कि वे सचिव से पूछ देखें कि क्‍या उसने अपनी नोट-बुक में उनके मरने की तिथि पहले से लिख रखी थी? वह तो सर्वज्ञ है, उसे तो अवश्‍य पता होगा कि आज अहेरी उनका शिकार करेगा।

जीप मचान के नीचे पहुँच गई है। उससे डाक्टर और शिकारी निकले हैं। सचिव रस्‍सी की सीढ़ी नीचे लटका रहा है।

वे अंतिम बार आँखें खोलते हैं। चाँद को बहुत घने बादलों ने ढाँप लिया है। रात एकदम अँधेरी हो गई है। सब और उतना ही काला, गहन और सर्वग्राही अँधेरा छा गया है, जितना काला, गहन और सर्वग्राही अँधेरा उनकी आत्‍मा में है।

जब वह पेशेवर शिकारी और डाक्‍टर मचान पर उनके पास पहुँचते हैं तब तक वे मर चुके होते हैं…

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