आजकल माँ केचेहरे सेएक सूखती हुई नदी कीभाप छुटती हैताप बढ़ रहा हैधीरे-धीरेबसबर्फानी चोटियाँपिघलतीं नहीं Like this:Like Loading... See also मैं मजदूर हूँ | असलम हसन