आजकल माँ केचेहरे सेएक सूखती हुई नदी कीभाप छुटती हैताप बढ़ रहा हैधीरे-धीरेबसबर्फानी चोटियाँपिघलतीं नहीं See also पहाड़ पर बादल | मुकेश कुमार