आईना है वक्त
आईना है वक्त

आईना है वक्त
यह पत्थर नहीं है।

वस्तु के विज्ञापनों में
एक भाषा पिट रही है
और इस बाजार के मुँह
लग गया मछली दही है

हादसा है
खुशनुमा मंजर नहीं है।

थूह, टीला या कि पर्वत
या कि घाटी की सतह से
यह तुम्हीं पर तुम ‘विजन’ को
देखते हो किस जगह से

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यह धरा पूरी तरह
बंजर नहीं है।

युद्ध, मंदी या धमाके
हार में जो भी मिले हैं
कुछ प्रसू जय के
शहीदों की चिताओं पर खिले हैं

मूर्खों की आँख
फिर भी तर नहीं है।

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