आदिवासी-3
आदिवासी-3

हम जंगल के फूल
नहीं हम गेंदा और गुलाब।

नहीं किसी ने रोपा हमको
और न डाली खाद
गुलदस्तों में कैद नहीं, हम
हम स्वच्छंद, आजाद
            जो भी चाहे, आए, पढ़ लें
            हम हैं खुली किताब।

हम पर्वत की बेटी, नदियाँ
अपनी सखी-सहेली
हम हैं मुट्ठी तनी, नहीं हम
पसरी हुई हथेली
            माथे पर श्रम की बूँदें ये
            मोती हैं नायाब।

See also  अच्छा लगता है | प्रतिभा गोटीवाले

फूलों के परिधान पहन
अपना सरहल आता है
मादक, ढोल, नगाड़ों के सँग
जंगल भी गाता है
            पाँवों में थिरकन, तन में सिहरन
            आँखों में ख्वाब।

घोर अभावों में रहकर भी
सीखा हमने जीना
हँसना, गाना और नाचना
घूँट भूख की पीना
            क्या समझाएँ, नहीं समझ
            पाएँगे आप जनाब।

See also  ओ मेरे गीत

आप सभ्य, संभ्रांत लोग हैं
अजी, देखिए आकर
हमें बराबर का दर्जा है
घर में हों, या बाहर
            स्त्री-विमर्श के सौ सवाल का
            हम हैं एक जवाब।

Leave a comment

Leave a Reply