पिता | असीमा भट्ट
पिता | असीमा भट्ट

पिता | असीमा भट्ट

पिता | असीमा भट्ट

शाम काफी हो चुकी है
पर अँधेरा नहीं हुआ है अभी
हमारे शहर में तो इस वक्त
रात का सा माहौल हो जाता है
छोटे शहर में शाम जल्दी घिर आती है
बड़े शहरों के बनिस्पत लोग घरों में जल्दी लौट आते हैं
जैसे पंछी अपने घोंसले में

यह क्या है
जो मैं लिख रही हूँ
शाम या रात के बारे में
जबकि पढ़ने बैठी थी नाजिम हिकमत* को
कि अचानक याद आए मुझे मेरे पिता
आज, वर्षो बाद
कुछ समय उनका साथ मिला
अक्सर हम इतने बड़े हो जाते हैं कि
पिता कहीं दूर / पीछे छूट जाते हैं

See also  पश्यंती | त्रिलोचन

पिता के मेरे साथ होने से ही
वह क्षण में मेरे लिए महान हो जाता है
याद आता है मुझे मेरा बचपन
मैक्सिम गोर्की के ‘मेरा बचपन’ की तरह
याद आते हैं, मेरे पिता

और उनके साथ जीए / बिताये हुए लम्हे
हालाँकि उनका साथ उतना ही मिला
जितना कि सपने में मिलते हैं
कभी कभार उतने खूबसूरत पल
उन्हें मैंने ज्यादातर जेल में ही देखा
अन्य क्रांतिकारियों की तरह
मेरे पिता ने भी मुझसे सलाखों के उस पार से ही किया प्यार
उनसे मिलते हुए पहले याद आती है जेल
फिर उसके पीछे लोहे की दीवार
उसके पीछे से पिता का मुस्कुराता हुआ चेहरा

See also  अखबार | जसबीर चावला

वे दिन – जब मैं बच्ची थी
उनके पीछे लगभग दौड़ती
जब मैं थक जाती
थाम लेती थी पिता की उँगलियाँ
उनके व्यक्तित्व में मैं ढली
उनसे मैंने चलना सीखा चीते सी तेज चाल
आज वे मेरे साथ चल रहे हैं
साठ पार कर चुके मेरे पिता
कई बार मुझसे पीछे छूट जाते हैं

See also  मधुशाला | हरिवंशराय बच्चन

क्या यह वही पिता हैं मेरे
साहसी / फुर्तीले
सोचते हुए मैं एकदम रुक जाती हूँ
क्या मेरे पिता बूढ़े हो रहे हैं ?
आखिर पिता बूढ़े क्यों हो जाते हैं ?

पिता तुम्हें बूढ़ा नहीं होना चाहिए
ताकि दुनिया भर की सारी बेटियाँ
अपने पिता के साथ दौड़ना सीख सके
दुनिया भर में
बेफिक्र
निर्भय…

(नाज़िम हिकमत टर्की के महान क्रांतिकारी कवि थे और उन्होंने भी लगभग एक दशक जेल में बिताए।)

Leave a comment

Leave a Reply