व्यवस्था | नरेंद्र जैन
व्यवस्था | नरेंद्र जैन

व्यवस्था | नरेंद्र जैन

व्यवस्था | नरेंद्र जैन

इस आदमी के सामने 
जमीन पर एक थाली है 
इसमें कोई रोटी नहीं है 
लेकिन वह अँगुलियों से तोड़ता है कौर 
और खाने लगता है 
वह थाली की ओर देखता है 
और व्यस्त रहता है चबाने की क्रिया में 
उसकी थाली खाली है 
अब वह उठता है और एक 
डकार लेता है 
वह एक तृप्त व्यक्ति का अभिनय कर रहा 
अब बिस्तर पर लेट गया है वह 
उसकी आँखें खुली हैं 
और वह सो रहा है 
एक भूखे व्यक्ति की 
दिनचर्या इस तरह होती है संपन्न 
इस व्यवस्था में

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