विशाल पंखों वाला बहुत बूढ़ा आदमी | गाब्रिएल गार्सिया मार्केज
विशाल पंखों वाला बहुत बूढ़ा आदमी | गाब्रिएल गार्सिया मार्केज

विशाल पंखों वाला बहुत बूढ़ा आदमी | गाब्रिएल गार्सिया मार्केज – Vishal Pankhon Vala Bahut Budha Aadami

विशाल पंखों वाला बहुत बूढ़ा आदमी | गाब्रिएल गार्सिया मार्केज

बारिश के तीसरे दिन उन्होंने घर के भीतर इतने केकड़े मार दिए थे कि पेलायो को अपना भीगा आँगन पार करके उन्हें समुद्र में फेंकना पड़ा। दरअसल नवजात शिशु को सारी रात बुखार रहा था और उन्हें लगा कि ऐसा मरे हुए केकड़ों की सड़ांध की वजह से था। मंगलवार से ही पूरी दुनिया उदास थी। समुद्र और आकाश धूसर राख के रंग के हो गए थे और तट पर पड़ी रेत, जो मार्च की रातों में रोशनी के चूरे-सी चमकती थी, अब सड़ी हुई मछलियों और कीचड़ का लोंदा बन कर रह गई थी। दोपहर के समय भी रोशनी इतनी कम थी कि जब पेलायो केकड़े फेंक कर वापस घर में घुस रहा था तो वह ठीक से यह नहीं देख पाया कि आँगन के पिछवाड़े में जो चीज हिल-डुल रही और कराह रही थी वह क्या थी। बहुत पास जा कर देखने पर उसने पाया कि दरअसल वह एक बहुत बूढ़ा आदमी था जिसका चेहरा कीचड़ में धँसा था और जो बहुत कोशिश करने के बाद भी उठ नहीं पा रहा था क्योंकि उसकी पीठ पर विशाल पंख उगे हुए थे जो उसके उठने में बाधक थे।

उस दुःस्वप्न से डर कर पेलायो भाग कर अपनी पत्नी एलिसेंडा के पास पहुँचा। वह बीमार शिशु के माथे पर ठंडे पानी की पट्टियाँ रख रही थी। पेलायो एलिसेंडा को आँगन के पिछवाड़े में ले आया। दोनों ने कीचड़ में गिरे हुए उस बूढ़े को चुपचाप हैरानी से देखा। बूढ़े ने किसी कबाड़ी जैसे कपड़े पहने हुए थे। उसके गंजे सिर पर केवल कुछ ही सफेद बाल बचे हुए थे और उसके मुँह में उससे भी कम दाँत रह गए थे। किसी बुरी तरह भीगे हुए दादाजी जैसी उसकी दयनीय हालत ने उसकी शान के वे सारे अवशेष खत्म कर दिए थे जो कभी उसका हिस्सा रहे होंगे। ऐसा लगता था जैसे उसके गंदे, नुचे हुए, विशाल पंख सदा के लिए कीचड़ में धँस गए थे। पेलायो और एलिसेंडा ने उस बूढ़े को इतनी देर तक और इतने करीब से देखा कि जल्दी ही उनकी हैरानी जाती रही और अंत में उन्हें वह बूढ़ा पहचाना-सा लगा। तब उन्होंने उससे बात करने की हिम्मत की लेकिन उसने किसी न समझ आने वाली भाषा में जवाब दिया। उसकी आवाज सुन कर उन्हें लगा जैसे वह कोई नाविक था। इसलिए उन्होंने उसके तकलीफदेह पंखों की अनदेखी कर दी और बेहद अक्लमंदी से वे इस नतीजे पर पहुँचे कि जरूर वह समुद्री तूफान में डूब गए किसी विदेशी जहाज का बचा हुआ भटकता नाविक होगा। फिर भी उन्होंने उसे देखने के लिए एक पड़ोसी महिला को भी बुला लिया जो जीवन और मृत्यु के बारे में सब कुछ जानती थी। उस महिला ने बूढ़े को देखते ही उन्हें उनकी गलती का अहसास दिला दिया।

“यह एक देव-दूत है,” महिला ने उन्हें बताया। “जरूर वह शिशु के लिए यहाँ आ रहा होगा लेकिन बेचारा इतना बूढ़ा है कि कि वह तेज बारिश के थपेड़े नहीं सह पाया होगा और गिर गया होगा।”

अगले दिन सब यह बात जान गए कि हाड़-मांस का बना एक देव-दूत पेलायो के मकान में कैद था। उस बुद्धिमान पड़ोसी महिला की राय में उस जमाने में देव-दूत एक खगोलीय षड्यंत्र में शामिल बचे हुए भगोड़े थे और उन्हें दंड दिया जाना चाहिए था। पर वे दोनों पति-पत्नी उस देव-दूत को पीट-पीट कर मार डालने की क्रूरता नहीं कर सके। हालाँकि पूरी दोपहर पेलायो एक डंडा लिए हुए रसोई में से उस पर नजर रखे रहा और रात में सोने के लिए जाने से पहले उसने उस देव-दूत को कीचड़ में से घसीट कर बाहर निकाला और उसे मुर्गियों के साथ बाड़े में बंद कर दिया। बीच रात में जब बारिश रुक गई थी, पेलायो और एलिसेंडा तब भी केकड़े मार रहे थे। कुछ देर बाद शिशु जाग गया। अब उसे बुखार नहीं था और उसे भूख लगी थी। तब उन्हें दरियादिली महसूस हुई और उन्होंने निश्चय किया कि वे उस देव-दूत को बीच समुद्र में एक बेड़े पर तीन दिनों के खाना-पानी के साथ छोड़ देंगे। बाकी उसकी किस्मत। लेकिन पौ फटने के साथ ही जब वे आँगन में गए तो उन्होंने पाया कि उनके सारे पड़ोसी मुर्गियों के बाड़े के सामने जमा थे। वे सब उस देव-दूत का मजाक उड़ा रहे थे। उनमें उसके प्रति जरा भी सम्मान नहीं था बल्कि वे तो बाड़े के तारों के बीच से उसकी ओर इस तरह खाने के टुकड़े फेंक रहे थे जैसे वह कोई अलौकिक प्राणी न हो, सर्कस का जानवर हो।

उस अजीब खबर से चौंक कर पादरी गौनजैगा वहाँ सुबह सात बजे से पहले पहुँच गया। उस समय तक सुबह तड़के मौजूद दर्शकों की तुलना में थोड़े कम छिछोरे लोग वहाँ पहुँच चुके थे और वे सभी उस बंदी के भविष्य के बारे में तरह-तरह की अटकलें लगा रहे थे। उनमें से सबसे सीधे-सादे लोगों का मानना था कि उस बूढ़े देव-दूत को विश्व का महापौर बना देना चाहिए। उनसे अलग अन्य सख्त मिजाज वाले लोगों ने कहा कि उसे पदोन्नति दे कर सेनापति बना दिया जाए ताकि उसकी कमान में सभी युद्ध जीते जा सकें। कुछ स्वप्नदर्शियों का विचार तो यह था कि उसके माध्यम से पृथ्वी पर पंखों वाली एक अक्लमंद प्रजाति के मनुष्यों को विकसित किया जा सकता था जो बाद में पूरे ब्रह्मांड की देख-रेख की जिम्मेदारी ले सकते थे। किंतु पादरी बनने से पहले फादर गौनजैगा एक लकड़हारे के रूप में कड़ी मेहनत किया करता था।

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बाड़े के तारों के पास खड़े हो कर उसने पल भर में ही अपने धर्मशिक्षण पर पुनर्विचार कर डाला। उसने बाड़े के तार खोलने का आदेश दिया ताकि वह उस बेचारे आदमी को करीब से देख सके जो मंत्रमुग्ध मुर्गियों के बीच एक बड़े आकार की कमजोर मुर्गी-सा लग रहा था। सुबह तड़के आए लोगों द्वारा फेंके गए फलों के छिलकों और खाने के टुकड़ों के बीच कोने में पड़ा वह बूढ़ा धूप में अपने खुले पंख सुखा रहा था।

जब पादरी गौनजैगा ने मुर्गियों के बाड़े में जा कर लातिनी भाषा में उसका अभिवादन किया तो विश्व की ढिठाई से बेखबर उसने केवल अपनी प्राचीन आँखों की पलकें उठाईं और फिर वह अपनी जबान में कुछ बुदबुदाया। पादरी को पहले-पहल उस बूढ़े के ढोंगी होने की शंका तब हुई जब उसने पाया कि वह न तो ईश्वर की भाषा (लैटिन) समझ सकता था, न ही उसे एक पादरी का अभिवादन करने का शिष्टाचार आता था। फिर उसने पाया कि करीब से देखने पर वह बूढ़ा बिल्कुल इनसान जैसा लगता था। बाहर पड़े रहने से उसकी देह से एक असहनीय दुर्गंध आ रही थी। उसके पंखों के उल्टे हिस्से परजीवियों से भरे थे। तेज हवा ने उसके पंखों को कई जगह नुकसान पहुँचाया था। देव-दूतों की शानदार गरिमा के अनुरूप उसमें कहीं कुछ नहीं था।

फिर पादरी मुर्गियों के बाड़े में से बाहर निकल आया और अपने एक संक्षिप्त प्रवचन में उसने जिज्ञासुओं को अधिक भोले और सीधे होने के खतरों के बारे में बताया। उसने उन्हें याद दिलाया कि शैतान धोखा देने के लिए कई युक्तियाँ इस्तेमाल करता है ताकि असतर्क लोग भ्रम में पड़ जाएँ। उसने दलील दी कि यदि एक हवाई जहाज और एक बाज में फर्क तय करते समय पंखों को आवश्यक हिस्सा नहीं माना जा सकता तो देव-दूतों को पहचानने में पंखों की भूमिका उससे भी कम है। इसके बावजूद पादरी ने वादा किया कि वह अपने वरिष्ठ पादरी को एक पत्र लिखेगा ताकि वह सर्वोच्च पादरी को एक पत्र लिख कर इस विषय में अंतिम निर्णय प्राप्त कर सके।

किंतु सावधान रहने के पादरी के उपदेश का लोगों पर कोई असर नहीं हुआ। बंदी देव-दूत की खबर इतनी तेजी से फैली कि कुछ ही घंटों में उस आँगन मे बाजार जितनी चहल-पहल हो गई और अधिकारियों को संगीन वाली बंदूकों से लैस सैनिक बुलाने पड़े ताकि उस बेकाबू भीड़ को तितर-बितर किया जा सके जो पूरा मकान गिरा देने पर आमादा थी। भीड़ ने जो गंदगी वहाँ फैलाई थी, उसे झाड़ू से बुहार कर साफ करने की वजह से एलिसेंडा की पीठ में दर्द होने लगा। तब उसके मन में यह विचार आया कि आँगन में बाड़ लगा कर क्यों न देव-दूत को देखने आने वालों के लिए कुछ रुपयों का प्रवेश-शुल्क लगा दिया जाए।

जिज्ञासु लोग दूर-दूर से आने लगे। तरह-तरह के खेल-तमाशों से लैस, उत्सव का माहौल लिए एक घुमंतू दल वहाँ आ पहुँचा। उड़ने की कलाबाजी दिखाने वाला इस दल का एक कलाकार कई बार भीड़ के ऊपर से गुजरा, किंतु लोगों ने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया क्योंकि उसके पंख किसी देव-दूत के नहीं थे बल्कि किसी चमगादड़ जैसे थे। धरती पर मौजूद सबसे ज्यादा बीमार लोग भी स्वास्थ्य-लाभ करने की आशा लिए वहाँ पहुँचने लगे। इनमें एक गरीब महिला थी जिसने बचपन से अपने दिल की धड़कनों को गिना था और अब उसे गिनती की सही संख्या का अंदाजा भी नहीं रहा था। पुर्तगाल का एक आदमी था जिसका कहना था कि सितारों का शोर उसे सोने नहीं देता। इन्हीं में नींद में चलने की बीमारी वाला एक आदमी भी था जो दिन में जागृत अवस्था में किए गए अपने सारे काम रात में उठ कर मिटा देता था। इनके अलावा कई और रोगी भी वहाँ आए जिनकी बीमारियाँ इतनी गंभीर नहीं थीं। थकान के बावजूद पेलायो और एलिसेंडा खुश थे क्योंकि एक हफ्ते से भी कम समय में उनके कमरे रुपयों से ठसाठस भर गए थे जबकि भीतर आ कर उस बूढ़े को देखने वाले तीर्थ-यात्रियों की कतार क्षितिज के भी आगे तक फैली हुई थी।

वह बूढ़ा देव-दूत ही वहाँ मौजूद एकमात्र ऐसा व्यक्ति था जो अपने लिए आयोजित उस पूरे तमाशे में कोई भूमिका नहीं निभा रहा था। अपने उधार के रहने की उस जगह में वह किसी तरह आराम से रहने की कोशिश कर रहा था, हालाँकि तार के पास जलाई गई पवित्र मोमबत्तियों और दीयों और लालटेनों में पड़े तेल के जलने से उठती असह्य गर्मी उसे पीड़ित कर रही थी।

शुरू में लोगों ने उसे नैप्थलीन की गोलियाँ खिलाने की कोशिश की क्योंकि पड़ोस में रहने वाली अक्लमंद महिला ने बताया कि देव-दूत यही खाते थे। लेकिन बूढ़े ने इसे खाने से इनकार कर दिया। उसने तीर्थ-यात्रियों द्वारा दिया गया पवित्र भोजन भी ठुकरा दिया। अंत में उसने केवल बैगन का गूदा ही खाया। क्या इसकी वजह यह थी कि वह एक देव-दूत था या यह कि वह बूढ़ा था, यह बात लोग कभी नहीं जान पाए। उसकी एकमात्र अलौकिक खूबी यह थी कि वह सहनशील था। खास करके शुरुआती दिनों में, जब उसके पंखों में मौजूद खगोलीय परजीवियों की तलाश में उद्धत मुर्गियाँ उसे अपने चोंचों से मार रही थीं और किसी चमत्कार की उम्मीद में अपंग और बीमार लोग उसके पंखों को नोच-नोच कर अपने रुग्ण और बेकार अंगों से लगा रहे थे। यहाँ तक कि उनमें से सबसे दयालु लोग भी उसे पत्थरों से मार रहे थे क्योंकि वे देखना चाहते थे कि उठ कर खड़े होने पर वह कैसा दिखता है। वह केवल एक बार तभी हिला-डुला जब लोगों ने एक गरम सलाख से उसे दाग दिया।

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दरअसल वह बूढ़ा कई घंटों तक बिना हिले-डुले बैठा रहा था और लोगों को लगा था कि वह मर चुका है। गरम सलाख से दागे जाने पर उसने तीव्र प्रतिक्रिया दिखाई। वह चौंक कर उठा और अपनी अजनबी भाषा में न जाने क्या प्रलाप करने लगा। उसकी आँखों में आँसू छलक आए। फिर उसने अचानक अपने पंखों को तेजी से फड़फड़ाया जिससे मुर्गियों के मल और खगोलीय धूल की उठी आँधी ने चारों ओर भगदड़ मचा दी। हालाँकि कई लोगों को यह लगा कि उसकी प्रतिक्रिया क्रोध से नहीं बल्कि पीड़ा से उपजी थी, फिर भी इस घटना के बाद लोग उससे सावधानी से पेश आने लगे। अधिकांश लोग अब समझ गए कि उसकी निष्क्रियता किसी नायक के आराम की क्रिया नहीं है बल्कि महाप्रलय लाने वाली किसी तबाही का रुका हुआ होना है।

पादरी गौनजैगा ने इधर-उधर की प्रेरक कहानियाँ सुना कर छिछोरेपन पर उतारू भीड़ को किसी तरह रोक रखा था। दरअसल बंदी के साथ आगे क्या किया जाना है, वह इस बारे में धर्माचार्यों के अंतिम फैसले के आने की प्रतीक्षा कर रहा था।

लेकिन रोम से संदेश आने में देरी होती जा रही थी। वहाँ जमा हुए लोग अब तरह-तरह की बातें करके अपना समय गुजार रहे थे। जैसे – बंदी की नाभि है या नहीं। उसकी बोली किसी ज्ञात भाषा से मिलती-जुलती है या नहीं। वह सुई में धागा डाल सकता है या नहीं। कहीं वह नॉर्वे का एक ऐसा नागरिक तो नहीं जिसके पंख उग आए हैं। वगैरह। पादरी को रोम से आने वाले संदेश की प्रतीक्षा शायद अनंतकाल तक करनी पड़ जाती, किंतु सही समय पर घटी एक घटना ने उसे इस मुसीबत से मुक्ति दिला दी।

हुआ यह कि उन्हीं दिनों आकर्षित करने वाले दूसरे बहुत सारे खेल-तमाशों के साथ-साथ शहर में एक ऐसा तमाशा दिखाने वाला समूह भी आ पहुँचा जिसमें अपने माता-पिता की बात न मानने के कारण मकड़ी बन गई एक युवती भी थी। इस तमाशे को देखने के लिए लगाया गया प्रवेश-शुल्क देव-दूत को देखने के लिए लगाए गए प्रवेश-शुल्क से कम था। न केवल यह बल्कि लोग मकड़ी बन गई युवती से उसकी दुर्दशा के बारे में तरह-तरह के प्रश्न भी पूछ सकते थे और उसकी जाँच-पड़ताल कर सकते थे ताकि किसी को भी उसकी डरावनी हालत के बारे में कोई संदेह न रहे। वह भेड़ के आकार की एक डरावनी टैरेनटुला मकड़ी थी जिसका सिर एक उदास युवती का था। सबसे ज्यादा हृदय-विदारक बात उसका विचित्र आकार नहीं था बल्कि वह सच्ची वेदना थी जिस में डूब कर वह लोगों को विस्तार से अपने दुर्भाग्य की कथा सुनाती थी। इस कथा के अनुसार जब वह अभी बच्ची ही थी तब एक दिन वह अपने माता-पिता की आज्ञा के बिना एक नृत्य-समारोह में भाग लेने के लिए अपने घर से निकल भागी थी। वहाँ सारी रात वह नाचती रही थी। बाद में जब वह जंगल के रास्ते घर लौट रही थी तब अचानक बादलों की भीषण गर्जना के साथ आकाश दो हिस्सों में बँट गया, बिजली कड़की और गंधक के साथ हुए उस वज्रपात ने उसे एक मकड़ी में बदल दिया। उसका एकमात्र पौष्टिक आहार मांस के वे टुकड़े थे जो उदार लोग उसके मुँह में डाल दिया करते थे।

यह एक ऐसा तमाशा था जो मानवीय सच्चाई और डरावने सबक से भरपूर था। बिना प्रयास के ही यह तमाशा उस तमाशे पर भारी पड़ा जिसमें एक घमंडी देव-दूत लोगों की ओर देखता तक नहीं था। इसके अलावा देव-दूत के नाम पर प्रचारित किए गए थोड़े-से चमत्कार लोगों को किसी मानसिक बीमारी जैसे लगे। जैसे – बूढ़े देव-दूत की संगति में भी एक अंधे आदमी की आँखों की रोशनी तो वापस नहीं आई लेकिन उसके तीन नए दाँत उग आए। इसी तरह वहाँ आया एक अपाहिज चलने-फिरने में सक्षम तो नहीं हो पाया पर वह लाटरी का इनाम लगभग जीत ही गया था। ऐसे ही एक और मामले में वहाँ आए एक कोढ़ी के घावों में से सूरजमुखी के फूल उगने लगे। खिल्ली उड़ाने जैसे इन सांत्वना-चमत्कारों ने पहले ही देव-दूत की ख्याति को धक्का पहुँचाया था। उसकी रही-सही प्रसिद्धि को पूरी तरह नष्ट करने का काम मकड़ी बन गई युवती ने कर दिया। इस तरह पादरी गौनजैगा रात भर जगे रहने की अपनी मजबूरी से मुक्त हो गया और पेलायो का आँगन पहले के उस समय की तरह ही खाली हो गया जब तीन दिनों तक लगातार बारिश होती रही थी और केकड़े घर के सोने वाले कमरों में घूमने लगे थे।

उस घर के मालिकों के लिए शोक मनाने का कोई कारण न था। इस पूरे तमाशे के दौरान उन्होंने बहुत रुपया कमा लिया था जिससे उन्होंने एक भव्य दोमंजिला मकान बना लिया। इस आलीशान मकान में कई छज्जे और बगीचे थे और एक ऊँची बाड़ थी ताकि सर्दियों में केकड़े भीतर न आ सकें। इस मकान की खिड़कियों में लोहे की सलाखें भी थीं ताकि देव-दूत भी अंदर न आ सकें। पेलायो ने जमींदार के कारिंदे की नौकरी छोड़ दी और शहर के पास ही जमीन खरीद कर वहाँ खरगोशों को पालने का व्यवसाय शुरू कर दिया। दूसरी ओर एलिसेंडा ने भी साटन कपड़े के ऊँची एड़ी वाले कुछ ऐसे पंप-जूते और रेशम की कुछ ऐसी सतरंगी पोशाकें खरीद लीं जैसी उस जमाने में रविवार के दिन वहाँ की संभ्रांत महिलाएँ पहनती थीं।

मुर्गियों का बाड़ा ही एकमात्र ऐसी चीज थी जिस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। यदि वे इसे फेनाइल से साफ करते थे और वहाँ धूप-बत्ती जलाते थे तो वह सब देव-दूत के सम्मान में नहीं किया जाता था बल्कि वहाँ इकट्ठा होने वाले कूड़े के ढेर से आने वाली उस दुर्गंध से बचने के लिए किया जाता जो किसी प्रेत की तरह हर कोने में घुस जाती और उस नए मकान को किसी पुरानी बदबूदार इमारत में बदल देती।

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शुरू-शुरू में जब बच्चे ने चलना शुरू किया तो वे बेहद सावधानी से यह सुनिश्चित करने की कोशिश करते कि वह मुर्गियों के बाड़े के ज्यादा करीब न जाए। लेकिन धीरे-धीरे उनका डर जाता रहा और वे बदबू के आदी हो गए। अपना दूसरा दाँत निकलने से पहले बच्चा वहाँ से मुर्गियों के बाड़े में जा कर खेलने लगा था जहाँ बाड़ की तारें उखड़ गई थीं। बच्चे के प्रति भी बूढ़े देव-दूत का रवैया वैसा ही रहा जैसा अन्य लोगों के प्रति था, किंतु वह धीरज के साथ हर प्रकार की नीचता सह लेता था जैसे वह एक कुत्ता हो जिसे अपने बारे में कोई भ्रम न हो। उस बच्चे और बूढ़े देव-दूत – दोनों को एक ही समय में छोटी माता निकल आई। जिस डॉक्टर ने बच्चे का इलाज किया वह देव-दूत की छाती पर आला लगा कर सुनने के लोभ से खुद को न रोक सका। डॉक्टर को देव-दूत के सीने में ऐसी घड़घड़ाहट सुनाई दी और उसके गुर्दे में से इतनी ज्यादा आवाजें आती हुई सुनाई दीं कि उसे देव-दूत के जीवित बचे होने पर आश्चर्य हुआ। लेकिन उसे सबसे ज्यादा हैरानी देव-दूत के पंखों की मौजूदगी पर हुई। किसी भी आम आदमी जैसे लगने वाले उस देव-दूत पर वे पंख इतने सहज लग रहे थे कि डॉक्टर यह नहीं समझ पाया कि दूसरे इनसानों के शरीर पर भी पंख क्यों नहीं थे।

आखिर धूप और बारिश का आघात सहते-सहते एक दिन मुर्गियों का बाड़ा गिर गया। इस घटना के कुछ समय बाद बच्चे ने स्कूल जाना शुरू कर दिया। देव-दूत किसी भटकते हुए मरणासन्न व्यक्ति-सा खुद को घर में इधर-उधर घसीटता फिरता। वे झाड़ू ले कर उसे सोने वाले कमरे से भगाते लेकिन पल भर बाद ही वे उसे रसोईघर में पाते। वह बूढ़ा देव-दूत एक साथ इतनी सारी जगहों पर मौजूद रहता कि वे चकरा जाते और सोचते कि उसने अपने प्रतिरूप तैयार कर लिए हैं। उन्हें संदेह होता कि उसने पूरे घर में अपने जैसे कई और देव-दूत बना लिए हैं और तब खीझी हुई एलिसेंडा घबरा कर चिल्लाने लगती कि देव-दूतों से भरे उस जहन्नुम में रहना बेहद डरावना था।

वह बूढ़ा देव-दूत अब बहुत मुश्किल से ही कुछ खा पाता और उसकी प्राचीन आँखों की रोशनी अब इतनी धुँधली हो गई थी कि वह अक्सर चीजों से टकराता रहता। परों के नाम पर अब उसके शरीर पर उसके अंतिम बचे पंखों के नग्न ढाँचे ही रह गए थे। उसकी हालत पर तरस खा कर पेलायो ने उस पर एक कंबल डाल दिया और उदारता दिखाते हुए उसे अहाते में सोने दिया। तब जा कर उन्होंने पाया कि रात में उसे तेज बुखार हो गया था, जिस हालत में किए जा रहे अपने प्रलाप में वह नार्वे की भाषा के कठिन शब्द बड़बड़ाता हुआ-सा लग रहा था। ऐसा कभी-कभार ही हुआ था कि वे उस बूढ़े के बारे में भयभीत हुए हों, लेकिन उस बार ऐसा-ही हुआ। दरअसल उन्हें लगा कि वह बूढ़ा देव-दूत मरने वाला था और वह अक्लमंद पड़ोसी महिला भी उन्हें नहीं बता पाई थी कि मर गए देव-दूतों के साथ क्या किया जाता था।

इसके बावजूद वह न केवल भीषण ठंड झेल कर बच गया बल्कि अच्छे मौसम के शुरू होते ही उसकी हालत में सुधार भी हुआ। आँगन के दूर के कोने में वह कई दिनों तक बिना हिले-डुले बैठा रहा। वहाँ उसे कोई नहीं देख सकता था। अगले माह के शुरू में उसके पंखों पर कुछ बड़े और खड़े बालों के गुच्छे उगने लगे। ये किसी बिजूका के परों-से थे। जैसे ये दोबारा जर्जरता का दुर्भाग्य ले कर आए हों। लेकिन बूढ़े को शायद इस परिवर्तन का कारण पता था क्योंकि वह पूरी तरह सतर्क था कि कोई इसके बारे में न जान पाए। कभी-कभी वह रात में छिप कर सितारों तले समुद्री गीत गुनगुनाता था। उसने इसकी भनक भी किसी को नहीं लगने दी।

एक सुबह एलिसेंडा दोपहर के भोजन के लिए प्याज काट रही थी जब बीच समुद्र से बह कर आई हवा रसोईघर में पहुँची। तब वह खिड़की तक गई और उसने देव-दूत को उड़ने का पहला प्रयास करते हुए पाया। वह कोशिश इतनी बेढंगी थी कि उसके नाखूनों ने सब्जियों के खेत में खाँचा डाल दिया। उसके पंखों की अनाड़ियों जैसी भद्दी फड़फड़ाहट ने अहाते को भी लगभग गिरा ही दिया था। उसके पंख हवा का ठीक से जायजा नहीं ले पा रहे थे, लेकिन किसी तरह वह हवा में ऊपर उठ गया।

जब एलिसेंडा ने उसे अंतिम मकानों के ऊपर से उड़ कर जाते हुए देखा तो उसने अपने लिए और उसके लिए चैन की साँस ली। वह किसी बूढ़े गिद्ध की तरह खतरनाक ढंग से अपने पंख फड़फड़ाते हुए किसी तरह खुद को हवा में रखे हुए था। एलिसेंडा प्याज काट लेने के बाद भी उसे देखती रही। वह तब तक उसे जाता हुआ देखती रही जब तक उसके लिए ऐसा करना संभव नहीं रह गया, क्योंकि तब वह बूढ़ा देव-दूत उसके जीवन में खीझ का कारण नहीं रह गया बल्कि समुद्री क्षितिज पर एक काल्पनिक बिंदु मात्र रह गया था।

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