विरही परिंदा | पर्सी बिश शेली
विरही परिंदा | पर्सी बिश शेली

विरही परिंदा | पर्सी बिश शेली

विरही परिंदा | पर्सी बिश शेली

बिछड़ी माशूका के गम में मायूस था
विरह से व्यथित एक विरही परिंदा
बैठा था काँपती डाल के कोने पर
गुमसुम… यादों के हसीं हिंडोले पर
सीना चीर रही थी ऊपर हवाएँ सर्द
नीचे बहता झरना भी हो गया था बर्फ
बेरौनक थे बेपत्ता जंगलों के नंगे ठूँठ
जमीन पर भी नहीं गिरा था एक भी फूल
खामोश थी हवाएँ… एकदम बेजान
गाहे-ब-गाहे चीखती थी पवनचक्की नादान

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *