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स्वप्नमयी संगिनी | पर्सी बिश शेली

स्वप्नमयी संगिनी | पर्सी बिश शेली स्वप्नमयी संगिनी | पर्सी बिश शेली स्वप्नरत, रास्ते से गुजरते देखा मैंनेसर्दियाँ हुई मौन… अचानक आ गया वसंतभटक गया मन, ऐसी गमकती थी गंधसमाए थे जिसमें जलधाराओं के रंग बहती जल धाराएँ पसरे हुए दूबचौरे परघनी झाड़ियों ने जिसे रखा था ढककरकभी नहीं सँजोया था साहस जिसकीहरित-मयूरपंखी उतावली बाँहों […]