उसका डर | कृष्णमोहन झा
उसका डर | कृष्णमोहन झा

उसका डर | कृष्णमोहन झा

उसका डर | कृष्णमोहन झा

वह अपने साथ हमेशा
एक डर लाती है अपने घर

वह स्कूल से लौटती है
तो उसके लहजे में कीड़े की तरह दुबका रहता है एक डर

वह लौटती है सहेली के घर से
तो उसके रूमाल से डर की बू आती है

वह मंदिर से लौटती है
तो प्रसाद में मिलता है डर का स्वाद

दुकान से लौटते वक़्त
उसके जीरे की पुड़िया में डर के कण मिले होते हैं…

वह कभी नहीं लौटती अकेली
अपने साथ हमेशा एक डर लाती है अपने घर।

वह
एक डर लाती है
और कुछ बड़ी हो जाती है

वह लाती है कुछ और डर
होती है कुछ और बड़ी

वह एक साथ कई डर लाने लगती है अपने घर
और इसी तरह हो जाती है जवान

जो लड़की है जितनी जवान
उसके पास उतने ही डर हैं।

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