उम्मीद | नीरज पांडेय
उम्मीद | नीरज पांडेय

उम्मीद | नीरज पांडेय

उम्मीद | नीरज पांडेय

इस 
उम्मीद से हैं 
सारे 
खेत 
कि कोई आएगा 
और कुछ ऐसा कर जाएगा 
कि उनके बारे में पहले बोली जाने वाली बात 
जो बहुत अदब और अरदब के साथ बोली जाती थी 
वो बातें फिर से बोली जाने लगेंगी 
कि

“लड़िका के बाप बीस बिगहा के जोतार अहइ 
लड़िका इनवस्टी में बीए करत बा 
चल्त्या देखि आइत 
कउनउ दिन 
बहुत नीक शादी बा”

या

“एतनी भुंई अहइ 
अगर लड़िकन नोकरी ओकरी न पइहीं 
तबउ कमाइ खाइ बरे रेल रही”

ये तब की बात है 
जब जोतारों का बड़ा सम्मान था 
जमीनें सोना उगलती थीं 
पूजी जाती थीं 
बैल भी उदास हो जाया करते थे 
अपने मालिक का लटका मुँह देखकर 
एक रिश्ता होता था 
किसानों, बैंलों और जमीनों के बीच 
जो अब आदमियों में भी नहीं बचा 
सब धान सत्ताइस पसेरी 
होकर रह गया!

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