उम्मीद कायम रहे मानव !!! | दीपक मशाल
उम्मीद कायम रहे मानव !!! | दीपक मशाल

उम्मीद कायम रहे मानव !!! | दीपक मशाल

उम्मीद कायम रहे मानव !!! | दीपक मशाल

विपत्ति के वातावरण में
जंतु मशीनों पर निर्भर होता प्राणी…
कंक्रीट के अभयारण्य में
होमोसेपियंस* से ज्यादा
इनके कलपुर्जे अभ्यस्त होते दिखते हैं
तथाकथित महानगरों में प्रकाश के व्युत्क्रमानुपाती
स्वप्नों के छिलके उतारने को व्याकुल
क्षण-भंगुर जीवन…

वास्कोडिगामा और कोलंबस के जहाजों के मस्तूल
और उनमे लगे दिशासूचक यंत्र
मनुष्यता को यहाँ तक तो ले आए
अब जाने किस दिशा में ले जाएँ

एडमंड हिलेरी का ऐतिहासिक पर्वतारोहण
गागरिन का भेद देना धरती की कक्षा को…
कर आना बाहर की सैर
मशीन ने ही तो बनाया संभव आदम के बेटों के लिए

गणना करने के लिए
कम पड़ने लगे जब अँगुलियों के पोर
जब भोजपत्र ना रहे पर्याप्त
मस्तिष्क की उपज को सहेजने को
तब केलकुलेटर से कंप्यूटर तक
जो तुमने रचे
जो किए आविष्कृत
अब तुम्हारे अंदर के कोणों में उजागर कालेपन को
मिटाने को तुम निर्भर हो
उस अपने ही सृजन पर

वो कालिख अब बर्फ सी सफेदी में भले ना बदली जा सके
मगर आगे उगने वाली खरोंचों
उनको जन्मने वाले
बड़ी लौ के लैंपों को मिटा तो सकती है…
उन्हें रोक सकती है तुम्हारे इतिहास पर कालिख मलने से

तुम्हारी उपज…
तुम्हारी मशीन…
ढूँढ़ सकती है, पहचान सकती है
छाँट सकती है भीड़ में से झूठ के सिपहसालार
अशांति के रहनुमा
लालच के सरदारों को…

उम्मीद कायम रहे मानव!!!

मनुष्य का जंतुवैज्ञानिक नाम

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *