तुम्हारे जन्मदिन पर | विमल चंद्र पांडेय
तुम्हारे जन्मदिन पर | विमल चंद्र पांडेय

तुम्हारे जन्मदिन पर | विमल चंद्र पांडेय

तुम्हारे जन्मदिन पर | विमल चंद्र पांडेय

1 .

तुम्हें क्या उपहार दूँ आज
जो सबसे कीमती न सही
सबसे अलग हो
हजारों वर्षों की यात्राओं के बाद मिले
एक क्षण विशेष को कैसे सजा दूँ
अपनी सदाबहार मनहूसियत को दूर हटा कर
तुम्हारे मन के सबसे सुंदर कोने में
क्या दूँ उपहार
जो किसी ने न दिया हो किसी को कभी
तुम्हारे भीतर पड़े कई उत्सवों के बासी तोरणद्वार
नोच कर निकाल दूँ और सजा दूँ नई झालरें
तुम्हारे हृदय में कैसे सहेज दूँ
हजारों रंगों के सुरों की लड़ियाँ
जिनकी सुगंध पहुँचे सिर्फ तुम्हारी इंद्रियों तक
कैसी-कैसी खामोशियाँ और कैसी-कैसी गुनगुनाहटें सजाई हैं
आज तक तुम्हारे तंतुओं पर
अब कौन सा राग छेड़ दूँ तुम्हारे तारों पर
कि बजता रहे एक अद्‍भुत संबंध का अद्‍भुत संगीत जीवन भर
कौन सी कलाकृति उकेर दूँ तुम्हारी हथेलियों पर
कि बदल जायँ सारी रेखाएँ तुम्हारी
और उनमें खामोशी से दिख जाए मेरा नाम
तुम्हें क्या उपहार दूँ
जो कभी नष्ट न हो
काल की इस आपाधापी में
जो बना रहे हमेशा
मेरे जाने के बाद भी
तुम्हारे जाने के बाद भी
मैं जानता हूँ
तुम एक ऐसी किताब हो
जिसे कोई विरला ही पढ़ सकता है
मैंने पढ़ा है
रात-रात भर जागकर
जैसे परीक्षा की तैयारी करता है कोई बालक
मैंने पढ़ा है इसलिए मुझे पता है कितने पृष्ठ कम हैं यहाँ
मुझे पता है कहाँ-कहाँ गलत छपाई हुई है
कहाँ-कहाँ स्याहियाँ बिखरी हैं तुम्हारे रोने से
कैसे जिल्द बदल दूँ इस किताब की
क्या दूँ तुम्हें उपहार जो सोख ले शब्दों को, धुंधलाते आँसुओं को
और फिर से टाँक दे खूबसूरत चमकीले शब्द
जोड़ दे छूट गए पन्नों को
जिन्हें पढ़ कर जब तुम मेरी ओर देखो
तो मैं तुम्हें जी लूँ
पूरा का पूरा !

2 .
तुम्हारे आने और जाने के समय में कोई साम्य नहीं है
और यही मेरे डर का सबसे बड़ा कारण है
मेरी निर्द्वंद्व पर हमला
तुम आहट देती हो धीरे से अपने आने की
और जाते वक्त तो बिलकुल खामोश ही होती हो

तुम उगी हो जमीन के बाहर-बाहर
तुम्हारी जड़ें फैली हैं अंदर दूर तक
मैं तुम्हारी फुनगियों को सहलाता हूँ
तुम शर्म से अपनी जड़ें सिकोड़ती हो
तुम्हारी साँसों के घटते जाने पर आज
हाँ, आज खास तौर पर
मुझे बहुत चिंता हो रही है

जब एक अपूर्व संतुष्टि के बीच तुम पूछती हो
‘हमने अभी जो किया वह प्रेम था न’
उस समय भी तुम्हारी बीतती साँसों में छिपी होती है मृत्यु
जो तुम अपने होंठों से मेरे भीतर उतारती हो
प्रियंवद की नायिका हो तुम
उद्दाम प्रेम में पगी, फिर भी कभी निश्चिंत, कभी उद्विग्न
मेरे पास तुम्हें छिपाने के लिए हृदय से बेहतर कोई स्थान नहीं
जब हरी दूब की नोक पर रखा पाता हूँ तुम्हारे आँसू
इधर-उधर नजर घुमाने पर तुरंत एक कोने में सहमी मिलती हो तुम

तुम्हें छूता हूँ तो पेड़ हो जाता हूँ
और तुम एक लता
तुमने मुझे रोना सिखाया है
पूरी श्रेष्ठता में पूरा उठकर
पूरी तरह जगमग-जगमग रोना
मैं हमेशा रोता रहूँगा
तुम्हारे जाने के बाद
तुम्हें हृदय में रखूँगा इस तरह
जैसे आसमान नदियों में सुरक्षित रखता है अपना रंग
जैसे आँधियाँ झाड़ियों में छिपा रखती हैं अपना तोड़
जैसे साजिंदे सुर में सहेज रखते हैं अपनी आवाज

3.
(जुलाई का महीना)

जब मैं अपने कमरे में अकेला अपने भीतर बैठा
कुछ पुरानी तस्वीरें देख रहा होता हूँ
एलबम समझ जाता है कि यह जुलाई का महीना है
जुलाई के महीने में इतनी रोशनी क्यों होती है ?

मेरा बस चले तो साल के कैलेंडर से फाड़ कर निकाल दूँ जुलाई का महीना
जहाँ तुम्हें चाहे न चाहे आना ही है बिना मेरी इजाजत के
ये मेरा गुस्सा नहीं मेरी चीख है कि मैं हर जुलाई दूर ही हूँ तुमसे
माँ अचानक पुकारती दरवाजा खटखटाती है
शाम का अँधेरा नीचे उतर आने का पता चलता है

तुम्हारा नाम हटा कर उसकी जगह बहुत सारे नाम रख दिए हैं दुनिया ने
तनख्वाह, यात्रा, शिकायतें, परिवार, कलियुग जैसे घिसे-पिटे शब्द
जो मरने के पहले हँसने के लिए प्रयोग करते हैं दुनिया से बोर लोग

तुम्हारी यादों की लौ में मेरा चेहरा सबसे पवित्र दिखाई देता है
वह चेहरा जो तुम छोड़ कर गई थी
वह नहीं जिसे पहन कर मैं सुबह अपनी कहानियाँ बेचने निकलता हूँ
सबसे अच्छे चेहरे ले गई तुम
जब मैं फूल, तितली और कॉमिक्स था
अब मेरा चेहरा एक मनहूस कवि सा हो गया है
जिसे कोई यह सोच कर नहीं देखता कि ये अवसादग्रस्त कवि कविताएँ न सुना दे

तुम्हारे जन्मदिन पर हर बार एक साल कम होता है
मेरी उम्र से
तुम खुश होती हो
मैं अपनी टीस को सँभाले छत पर शाम का सूरज निहारता हूँ
तुम पुनर्जन्म में विश्वास करती हो
मैं सिर्फ इसी जन्म को मानता हूँ
तुम अध्यात्मिक होती जाती हो हर साल
मैं रिसता जाता हूँ हर जुलाई
किसी को बिना खबर हुए
यूँ ही हँसता मुस्कराता

इसी महीने को सावन कहते हैं न ?
जब बरसती हैं आँखें और आसमान
कोई भरोसा नहीं होता मौसम और किस्मत का
बाहर निकलने में डर लगता है गुड़िया

4.
(तुम्हारी आँखें मेरी शरणस्थली हैं)

प्रेम में सबको कुछ न कुछ पाने की जल्दी थी
हम जब प्रेम में थे तो कहीं नहीं थे
सिर्फ अपने भीतर और बाहर आने के रास्ते बंद करने में सबसे तेज
मैंने एक लंबी साँस ली और फिर हमेशा के लिए सो गया
मेरी नींद मेरी बेहोशी के रंग की थी

जब हम प्रेम से निकले तो हिंसक बनैले पशु हो चुके थे
हमने प्रेम में सिर्फ अपने नाखून तेज किए थे
जो न मिल पाए उसे बिगाड़ने की आदिम आकांक्षा के साथ
हमने अपने साथ जो ज्यादतियाँ कीं
हम चाहते थे कि उनके निशान हमेशा बने रहे हमारी आत्माओं पर

तुम्हारा मेरे पास बिना किसी इच्छा के आना
दरअसल दुनिया के रिश्तों से चोट खाने का परिणाम है
मैं किसी कदर तुमसे अपनी चिता पर लेट कर मिला था
बिना किसी को इसकी भनक दिए हुए

तुम्हारी आँखों में वह जगह थी जहाँ जीवन का जिरहबख्तर पहने कोई हारा हुआ योद्धा
आराम कर सकता था दो पल
तुम तो जानती हो न
हारे हुओं के लिए नहीं होती कोई भी जगह कहीं भी

जिन्होंने मुझे लहूलुहान किया था अपने तीरों से
वे मुझे प्रेम करते थे
प्रेम जल थल और वायु में एक जैसा था
जैसी तुम थी निस्पृह मुझसे मिलते हुए पहली बार जल थल और वायु में एक सी
मानो अब दुबारा हम एक दूसरे से बात भी नहीं करेंगे कभी
तुमने मेरी आँखों में जो अनिश्चितता देखी थी
वह प्यार किए जाने की बेचैनी थी
मैं नहीं जी सकता था भरोसे के बाहर कोई जीवन
चाहे उसे धारदार बना उतार दिया जाए मेरी पीठ में हर बार

तुमसे प्रेम करने के लिए किसी से कोई शिकायत करने की जरूरत नहीं मुझे
जैसे तुम कभी नहीं कहती कि तुम्हारे डैने बहुत बड़े हैं और मैं जहाँ भी जाऊँ तुम इन्हें फैलाए रखती हो मेरे ऊपर
मैं बहुत अच्छा अभिनेता हूँ लेकिन सीमाओं का अतिक्रमण मेरे बस की बात नहीं
एक सहज जीवन और एक लंबी साँस
जो तुमसे ली है और तुममें वापस छोड़ दूँगा
हर बार

तुम मुझे सँभालती हो
तुममें खो जाना चाहता हूँ कुछ इस तरह
कि तुम्हें भी खोजने के लिए अलगाना पड़े खुद को मुझ से

जितनी कविताएँ मैंने तुम्हारे लिए लिखी हैं
वे उनसे बहुत बहुत कम हैं जितनी मैं सोचता हूँ तुम्हारे लिए
आज के दिन यह कहना चाहता हूँ धीमी आवाज में
दिनों का बदलना अपने बस में नहीं होता
हम सिर्फ प्यार किए जाने के लिए बनाए गए हैं
लाए गए हैं इस दुनिया में
शब्दों को गुम करने तुम्हारे भीतर आना है मुझे हर बार
तुम्हारी पलकों के नीचे वाले रास्ते से
भर लेना है तुम्हें अपनी बाँहों में और पूछनी है दुनिया की सबसे साधारण बात
‘इस बार जन्मदिन पर क्या चाहिए तुम्हें ?’

5.
(दूरी और छुरी में स्वर की समानता है)

तुम्हारे और मेरे बीच जो फासला किलोमीटर में है
उसकी गणना किलो या टन में भी की जा सकती है
जिसे अपने सीने पर लिए फिरता हूँ मैं मुंबई, दिल्ली, इलाहाबाद, लखनऊ
बनारस आते ही उतार देता हूँ जिसे
कुछ महीनों के लिए
कुछ महीने तो बिना भार ढोए जीने का हक होना चाहिए हर मजदूर को
हर मजबूर को

सिर्फ एक दीर्घ का फर्क है और देखिए वह है भी कहाँ
दूरी और छुरी में स्वर की समानता है
जितनी कविताएँ लिखी हैं मैंने आज तक दूरी पर
मैं सारी की सारी तुम्हारे नाम करता हूँ
आज तुम्हारे जन्मदिन पर !

उन बादलों को गौर से देखो
जिन्हें आसमान के आदेश से लौट जाना पड़ता है बिना बरसे
आसमान भी नहीं समझता उनकी हालत
उन्हें कोसा भी जाता है बरसने की उम्मीद देकर उसे तोड़ जाने के लिए
वे उदास होते हैं अपनी न बरस सकने की असमर्थता पर
जानती हो वे खुद सबसे ज्यादा दुखी होते हैं
कलियुग के कवियों और मजदूरों की हालत बादलों जैसी हो गई है

कुछ साजिशें खुशगवार भी होती होंगी
किस्मत शब्द हवाओं में से तो नहीं पैदा किया होगा किसी ने
किसी के साथ तो पहले भी ऐसा हुआ होगा
नहीं तो कोई शायर कैसे कह देता मुझसे पहले
कि तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है

कई बार यह समझ में ही नहीं आता
कि खुशकिस्मती का समय चल रहा है
या फिर बदकिस्मती का !

( फैज साहब से मुआफी सहित)

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