तुम मंद चलो | माखनलाल चतुर्वेदी
तुम मंद चलो | माखनलाल चतुर्वेदी

तुम मंद चलो | माखनलाल चतुर्वेदी

तुम मंद चलो | माखनलाल चतुर्वेदी

तुम मंद चलो, 
ध्वनि के खतरे बिखरे मग में – 
तुम मंद चलो।

सूझों का पहिन कलेवर-सा, 
विकलाई का कल जेवर-सा, 
घुल-घुल आँखों के पानी में – 
फिर छलक-छलक बन छंद चलो। 
पर मंद चलो।

प्रहरी पलकें? चुप, सोने दो! 
धड़कन रोती है? रोने दो! 
पुतली के अँधियारे जग में – 
साजन के मग स्वच्छंद चलो। 
पर मंद चलो।

ये फूल, कि ये काँटे आली, 
आए तेरे बाँटे आली! 
आलिंगन में ये सूली हैं – 
इनमें मत कर फर-फंद चलो। 
तुम मंद चलो।

ओठों से ओठों की रूठन, 
बिखरे प्रसाद, छुटे जूठन, 
यह दंड-दान यह रक्त-स्नान, 
करती चुपचाप पसंद चलो। 
पर मंद चलो।

ऊषा, यह तारों की समाधि, 
यह बिछुड़न की जगमगी व्याधि, 
तुम भी चाहों को दफनाती, 
छवि ढोती, मत्त गयंद चलो। 
पर मंद चलो।

सारा हरियाला, दूबों का, 
ओसों के आँसू ढाल उठा, 
लो साथी पाए – भागो ना, 
बन कर सखि, मत्त मरंद चलो। 
तुम मंद चलो।

ये कड़ियाँ हैं, ये घड़ियाँ हैं 
पल हैं, प्रहार की लड़ियाँ हैं 
नीरव निश्वासों पर लिखती – 
अपने सिसकन, निस्पंद चलो। 
तुम मंद चलो।

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