तारीखें | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता
तारीखें | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता

कितनी तारीखों का
धुआँ –
आँच –
और बुझान है
मेरी आँखों में

जमा हैं
कुछ तारीखें
मेरी आयु में
सूखे पत्तों की तरह।

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