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डाची

काट (काट – दस-बीस सिरकियों के खैमों का छोटा-सा गाँव) ‘पी सिकंदर’ के मुसलमान जाट बाकर को अपने माल की ओर लालचभरी निगाहों से तकते देख कर चौधरी नंदू वृक्ष की छाँह में बैठे-बैठे अपनी ऊँची घरघराती आवाज में ललकार उठा, ‘रे-रे अठे के करे है (अरे तू यहाँ क्या कर रहा है?)?‘ – और उस की छह […]