उसका सिर तेज दर्द से फटा जा रहा था। उसने पटरी से कान लगा कर रेलगाड़ी की आवाज सुननी चाही। कहीं कुछ नहीं था। उसने जब-जब जो-जो चाहा, उसे नहीं मिला। फिर आज उसकी इच्छा कैसे पूरी हो सकती थी। पटरी पर लेटे-लेटे उसने कलाई-घड़ी देखी। आधा घंटा ऊपर हो चुका था पर इंटरसिटी एक्सप्रेस […]
Tag: Sushant Supriya
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मेरा जुर्म क्या है?
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पिता के नाम
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पाँचवीं दिशा
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