Sushant Supriya
मेरा जुर्म क्या है?
आइए, इंस्पेक्टर साहब। मुझे शुबहा था कि आप लोग मेरे घर भी जरूर आएँगे। इलाके में जितने मुसलमान हैं, उनमें से ज्यादातर के दरवाजों पर आप पहले ही दस्तक दे चुके हैं। खैर, यह तो बता दीजिए कि मेरा जुर्म क्या है? क्या कहा? आपको मुझ पर भी शक है? तो आइए और मेरे घर … Read more
पिता के नाम
पूज्य पिताजी, सादर प्रणाम। चालीसवें जन्मदिन पर आपका बधाई-कार्ड मिला। आपके अक्षर सत्तर साल की उम्र में भी वैसे ही गोल-गोल मोतियों जैसे हैं जैसे पहले होते थे। आपकी हर चिट्ठी को मैंने सहेज कर रखा है। अपने खजाने में। ये चिट्ठियाँ मेरी धरोहर हैं, विरासत हैं। भाग-दौड़ भरे जीवन के संघर्षों में कभी अकेला … Read more
पाँचवीं दिशा
हम सब पिता को एक अंतर्मुखी व्यक्ति के रूप में जानते थे। दादाजी की मौत के बाद खेती-बाड़ी का दायित्व उनके कंधों पर आ गया था। लेकिन शायद वे अपने वर्तमान जीवन से खुश नहीं थे। मुझे अक्सर लगता कि शायद वे कुछ और ही करना चाहते थे। शायद उनके जीवन का लक्ष्य कुछ और … Read more
किस्मत
रेलगाड़ी ने एक लंबी सीटी दी और धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ ली। प्लेटफार्म पीछे छूट गया। फिर दोनों ओर झुग्गी-झोंपड़ियों की लंबी कतार दिखने लगी। मैंने बाहर देखना बंद करके डिब्बे के भीतर का जायजा लिया। मेरे ठीक सामने की सीट पर बैठे एक सज्जन कोई धार्मिक किताब पढ़ रहे थे। चालीस-पैंतालीस की उम्र। आँखों पर … Read more
एक दिन अचानक
एक शाम आप दफ्तर से घर आते हैं – थके-माँदे। दरवाजे पर लगा ताला आपको मुँह चिढ़ा रहा है। सुमी कहाँ गई होगी – जहन में गुब्बारे-सा सवाल उभरता है। बिना बताए? और पुलक? आप का तीन साल का आँखों का तारा? आप जेब में हाथ डाल कर चाभी निकालते हैं। ताले की एक चाभी … Read more