मिसफिट

उसका सिर तेज दर्द से फटा जा रहा था। उसने पटरी से कान लगा कर रेलगाड़ी की आवाज सुननी चाही। कहीं कुछ नहीं था। उसने जब-जब जो-जो चाहा, उसे नहीं मिला। फिर आज उसकी इच्छा कैसे पूरी हो सकती थी। पटरी पर लेटे-लेटे उसने कलाई-घड़ी देखी। आधा घंटा ऊपर हो चुका था पर इंटरसिटी एक्सप्रेस … Read more

मेरा जुर्म क्या है?

आइए, इंस्पेक्टर साहब। मुझे शुबहा था कि आप लोग मेरे घर भी जरूर आएँगे। इलाके में जितने मुसलमान हैं, उनमें से ज्यादातर के दरवाजों पर आप पहले ही दस्तक दे चुके हैं। खैर, यह तो बता दीजिए कि मेरा जुर्म क्या है? क्या कहा? आपको मुझ पर भी शक है? तो आइए और मेरे घर … Read more

बलिदान

मेरे परदादा बड़े जमींदार थे। वे कई गाँवों के स्वामी थे। उन्होंने कई मंदिर बनवाए थे। कई कुएँ और तालाब खुदवाए थे। कई-कई कोस तक उनका राज चलता था। वे अपनी वीरता के लिए भी विख्यात थे। एक बार ‘लाट साहब’ के साथ जब वे घने जंगल में शिकार पर गए थे तब एक खूँखार … Read more

बर्फ

पिताजी के भीतर एक अकेलापन रहता है। सुबह की धूप में चमकता हुआ। रात की चाँदनी में दमकता हुआ। बारिश में नहाता हुआ। ठंड में सिकुड़ता-सिमटता हुआ। उदासी में बिलखता हुआ। पिताजी के भीतर एक अकेलापन रहता है। पर वे अपने अकेलेपन के साथ अकेले नहीं होते। वे उससे ढेर सारी बातें करते हैं। अक्सर … Read more

पिता के नाम

पूज्य पिताजी, सादर प्रणाम। चालीसवें जन्मदिन पर आपका बधाई-कार्ड मिला। आपके अक्षर सत्तर साल की उम्र में भी वैसे ही गोल-गोल मोतियों जैसे हैं जैसे पहले होते थे। आपकी हर चिट्ठी को मैंने सहेज कर रखा है। अपने खजाने में। ये चिट्ठियाँ मेरी धरोहर हैं, विरासत हैं। भाग-दौड़ भरे जीवन के संघर्षों में कभी अकेला … Read more

पाँचवीं दिशा

हम सब पिता को एक अंतर्मुखी व्यक्ति के रूप में जानते थे। दादाजी की मौत के बाद खेती-बाड़ी का दायित्व उनके कंधों पर आ गया था। लेकिन शायद वे अपने वर्तमान जीवन से खुश नहीं थे। मुझे अक्सर लगता कि शायद वे कुछ और ही करना चाहते थे। शायद उनके जीवन का लक्ष्य कुछ और … Read more

झाड़ू

स्मृति की पपड़ी को मत कुरेदो,घावों से खून निकल आएगा। एक दिन पत्नी जिद करने लगी – ‘अपने पहले प्यार के बारे में बताइए न। आपके जीवन में मेरे आने से पहले कोई तो रही होगी। स्टूडेंट-लाइफ में आपने किसी से तो इश्क किया होगा।’ मैंने मुस्करा कर उसे टालना चाहा। लेकिन वह अड़ गई … Read more

किस्मत

रेलगाड़ी ने एक लंबी सीटी दी और धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ ली। प्लेटफार्म पीछे छूट गया। फिर दोनों ओर झुग्गी-झोंपड़ियों की लंबी कतार दिखने लगी। मैंने बाहर देखना बंद करके डिब्बे के भीतर का जायजा लिया। मेरे ठीक सामने की सीट पर बैठे एक सज्जन कोई धार्मिक किताब पढ़ रहे थे। चालीस-पैंतालीस की उम्र। आँखों पर … Read more

एक दिन अचानक

एक शाम आप दफ्तर से घर आते हैं – थके-माँदे। दरवाजे पर लगा ताला आपको मुँह चिढ़ा रहा है। सुमी कहाँ गई होगी – जहन में गुब्बारे-सा सवाल उभरता है। बिना बताए? और पुलक? आप का तीन साल का आँखों का तारा? आप जेब में हाथ डाल कर चाभी निकालते हैं। ताले की एक चाभी … Read more