सूरज से कम नहीं उलाहना,धूप लू को रिश्वत में बाँटना।कट रहे पेड़ जब यहाँ-वहाँ,छाया की क्या करें कामना छायादार वृक्षों की क्या कहें,बन रहे अमीरों के पालना।खलियानों में आग-सी बयार,सड़कों पर श्रमिकों का हाँफना। जब सूखे हों पालिका के नल,बाजार में पानी को बेचनाआजादी प्रजातंत्र सुख कोखुले आम पैसे से बेचना। एक दिन आएगा रामराज्य,एक […]
Sharad Alok
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विचारों की होली
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लखनऊ की चाशनी कहाँ गई?
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ओस्लो की सड़क पर
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