रुका हुआ रास्ता

घास-पात से निबटकर गोमती भैंस हथियाने गोठ गई हुई थी। असाढ़-ब्याही भैंस थी। कार्तिक तक तो ठीक चलती रही, मगर पूस लगते ही एकदम बिखुड़ गई। कार्तिक तक दोनों वक्त के तीन-साढ़े तीन से नीचे नहीं उतरी थी, मगर पूस की तुषार जैसे उसके थनों पर ही पड़ गई। दुकौली के तीन-साढ़े तीन सेर से … Read more

मिसेज ग्रीनवुड

अल्मोड़ा के उत्तर की ओर सिंतोला वन पड़ता है। बाँज, देवदार, चीड़ और काफल के घने गाछों से घिरे सिंतोला वन में मिसेज ग्रीनवुड अपनी छोटी-सी ‘ग्रीनवुड कॉटेज’ में रहती हैं। मिसेज ग्रीनवुड की आत्मा अतीत की बेधक स्मृतियों के घने गाछों से घिरी रहती है। अमरबेल की सुनहरी चादर से ढके काफल के गाछ … Read more

मैमूद

महमूद फिर जोर बाँधने लगा, तो जद्दन ने दायाँ कान ऐंठते हुए, उसका मुँह अपनी ओर घुमा लिया। ठीक थूथने पर थप्पड़ मारती हुई बोली, ‘बहुत मुल्ला दोपियाजा की-सी दाढ़ी क्या हिलाता है, स्साले! दूँगी एक कनटाप, तो सब शेखी निकल जाएगी। न पिद्दी, न पिद्दी के शोरबे, साले बहुत साँड़ बने घूमते हैं। ऐ … Read more

बित्ता भर सुख

अपने इस नए कार्यक्षेत्र में आने के बाद उसे यह पहला बच्चा जनवाना है। परसों जब वह यहाँ पहुँची, शाम काफी गहरी हो चुकी थी। जहाँ से वह आई है, शहर नितांत छोटा-सा, मगर शहर की अन्य सुविधाओं के साथ, बिजली की व्यवस्था भी वहाँ है। उस अभ्यस्तता में से एकाएक मोमबत्ती या दीये की … Read more

पोस्टमैन

लिफाफे के बाहर पता यों लिखा हुआ था : सोसती सिरी सरबोपमा – सिरीमान ठाकुर जसोतसिंह नेगी, गाँव प्रधान – कमस्यारी गाँव में, बड़े पटबाँगणवाला मकान, खुमानी के बोट के पास पता ऊपर लिखा, पोस्ट बेनीनाग, पासपत्न ठाकुर उन्हीं जसोतसिंह नेगी को जल्द-से-जल्द मिले – भेजने वाला, उनका बेटा रतनसिंह नेगी। हाल मुकाम – मिलीटर … Read more

पापमुक्ति

घी-संक्रांति के त्यौहार में अब सिर्फ दो ही दिन शेष रह गए हैं और त्यौहार निबटते ही ललिता अपने घर, यानी अपनी बड़ी दीदी नंदी के मायके को लौट जाएगी – लेकिन इस बार का उसका लौटना कितना रहस्मय हो सकता है? हो सकता है, कुछ ही दिनों बाद माँ आ पहुँचे कि नंदी, ललिता … Read more

प्रेत-मुक्ति

केवल पांडे आधी नदी पार कर चुके थे। घाट के ऊपर के पाट में अब, उतरते चातुर्मासा में सिर्फ घुटनों तक पानी है, हालाँकि फिर भी अच्छा खासा वेग है धारा में। एकाएक ही मन में आया कि संध्याकाल के सूर्य देवता को नमस्कार करें। जलांजलि छोड़ने के लिए पूर्वाभिमुख होते ही, सूर्य और आँखों … Read more

दो दुखों का एक सुख

‘साधो, करमगती किन टारी…’ – मिरदुला कानी, सीढ़ी के पथरौटे पर बैठी, मंजीरा कुटफुटा रही थी – ‘कोस अनेक बिकट बन फैल्यो, भसम करत चिनगारी… साधो…’ और ‘गाड़ी की सड़क’ के तल्ले ढाल की तरफ वाले किनारे पर बैठे करमिया को लग रहा था – मिरदुला कानी अपने गले की मिठास और वचनों की तिखास … Read more

एक शब्दहीन नदी

‘माई डियर हंसा!’ ‘ले प्यारी, इस दफा तेरे आर्डर की मुताबिक, खुले पोस्टकार्ड की जगह पर, बंद इंगलैंड लेटर भेज रहा हूँ। हकीकत तो यही हुई कि लवलेटर जरा सेक्रिट किस्म की वस्तु ही हुआ। इसमें दिल की गहराइयों को उतारना ठहरा। खैर, अब इस मुहरबंद चिट्ठी के आखरों को तेरे सिवा कोई दूसरा नहीं … Read more

उसने तो नहीं कहा था

राइफल की बुलेट आड़ के लिए रखी हुई शिला पर से फिसलती हुई जसवंतसिंह के बाएँ कंधे में धँसी थी, मगर फिर भी काफी गहरी चोट लग गई थी। उसकी आँखें इस वेदना से पथराकर यों घूम गई थीं, जैसे गोली खेलने में माहिर छोकरे अपने अँगूठे ओर तर्जनी में दबाकर, काँच की बिल्लौरियों को … Read more