हलाल की मुर्गी | राम सेंगर

हलाल की मुर्गी | राम सेंगर

हलाल की मुर्गी | राम सेंगर हलाल की मुर्गी | राम सेंगर यह हलाल की मुर्गीकब तक खैर मनाए जान की।कब गर्दन पर पड़े गँड़ासामर्जी है भगवान की। धर्म न नैतिकता सत्ता कीबजे हुक्मनामों की तूतीजनादेश के ढोल-मजीरेजनता यहाँ पाँव की जूतीदिए-लिए की पंचायत हैपौ बारह परधान की। पगड़ी उछले है गरीब कीन्याय अमीरों की … Read more

हुई कुल्हाड़ी लाल | राम सेंगर

हुई कुल्हाड़ी लाल | राम सेंगर

हुई कुल्हाड़ी लाल | राम सेंगर हुई कुल्हाड़ी लाल | राम सेंगर चबूतरा बढ़ई टोले काजुड़ी हुई चौपाल। राम मनोहर मुसका बुनतेबटे जेबरी चन्नाबजा रहा पीपनी निरंजनमटकें भग्गा-नन्नागुड़गुड़ा रहे हुक्का लहुरेकौंधे नहीं सवाल। ओमा, चंद्रपाल, गिद्धारीमुँहफट तीन तिलंगे।हाँक रहे हैं इधर-उधर कीखिखियाते हुड़दंगेडालचंद्र की सुने न कोईपीट रहे हैं गाल। खेत मजूरी चौका चूल्हाकिचिर-पिचिर का … Read more

बची एक लोहार की | राम सेंगर

बची एक लोहार की | राम सेंगर

बची एक लोहार की | राम सेंगर बची एक लोहार की | राम सेंगर बढ़े फासले अपरिचयों केऔर भी,साझेदारी कैसी भाव-विचार की। रिश्ते होतेनए अर्थ को खोलतेसंग-साथ के सहकारी उत्ताप सेउड़ीं परस्परता की मानों धज्जियाँअविश्वास के इसी घिनौने पाप सेजोड़-तोड़ की होड़ों मेंधुँधुआ गईपारदर्शिता, आपस के व्यवहार की। गवेषणा मेंसच के पहलू दब गएजो उभरा … Read more

चुपचाप दुख | राम सेंगर

चुपचाप दुख | राम सेंगर

चुपचाप दुख | राम सेंगर चुपचाप दुख | राम सेंगर बिन खाएबिना पिएसारा दिन लोहे से लड़ करलौटा तेरा बापसुन बेटा,अधपेटाउठ न जाय थाली सेतू ही अब हो जा चुपचाप। फँसा गले में गुस्साआँखों में प्राण दिपेंपानी दे,रोटी चमचोड़पंखा ला, पीठ झलूँढिबरी रख डिब्बे परपास बैठ,तुन्नकना छोड़तुम औरों के लाने हाड़-गोड़ तोड़ रहाभोग रहा कब-कब … Read more

इस दहलीज पर | राम सेंगर

इस दहलीज पर | राम सेंगर

इस दहलीज पर | राम सेंगर इस दहलीज पर | राम सेंगर चलो, छोड़ो कुर्सियों कोयहीं,इस दहलीज पर ही बैठ करदो बात करते हैं। सड़क-बगिया-खेल का मैदानबच्चे-खिसलपट्टीचाय पीने का इधरआनंद ही कुछ औरहमीं देखें, हमें कोई भी न देखे,यही सुख हैहमारे एकांत का यहपसंदीदा ठौर।पेड़-पौधे-फूल-बच्चे-सड़कनजरों में रहें तोतुम्हें छूना या न छूना भूल जातेयही भावों-विचारों … Read more

नए दौर में | राम सेंगर

नए दौर में | राम सेंगर

नए दौर में | राम सेंगर नए दौर में | राम सेंगर उम्मीदों के फूल सँजोकर,नजर गड़ाए हैं भविष्य परनए दौर में सब कुछ खोकर रिश्ते-नाते ढोंग-धतूरेहों जैसे बारिश के घूरेसामाजिकता को ले चलते हैंकिसी तरह कंधों पर ढोकर अपसंस्कारी हर मंडी हैलड़की यह बेबरबंडी हैलुभा रही ग्राहक के मन कोपतहीना नंगी हो-होकर गीदी गाय … Read more

अम्मा | राम सेंगर

अम्मा | राम सेंगर

अम्मा | राम सेंगर अम्मा | राम सेंगर जीने की जिद-सी है आईअम्मा लेश नहीं डरती है। है तहजीब बदल की कैसीकहते-कहते फट-सी पड़तीघटनाओं की लिए थरथरीपीछे लौटे-आगे बढ़तीदिनचर्या पर चीलें उड़तींझोंक स्वयं को कठिन समय मेंलड़ने का वह दम भरती है। चौलँग तमक अराजकता कीकुछ भी करो, खौफ काहे काइस दर्शन ने रह-रह तोड़ानर-नारी … Read more