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मन व्यथित मेरे प्रवासी | राकेश खंडेलवाल

मन व्यथित मेरे प्रवासी | राकेश खंडेलवाल मन व्यथित मेरे प्रवासी | राकेश खंडेलवाल गीत में जो ढल रहा है, मैं स्वयं ही हूँ अनावृत।घिस गई जो पिट गई जो बात वह गाता नहीं हूँगा चुके जिसको हजारों लोग, दोहराता नहीं हूँभाव हूँ मैं वह अनूठा, शब्द की उँगली पकड़ करचल दिया जो पंथ में तो लौट […]