स्वतंत्रताएँ सभी | राजकुमार कुंभज

स्वतंत्रताएँ सभी | राजकुमार कुंभज

स्वतंत्रताएँ सभी | राजकुमार कुंभज स्वतंत्रताएँ सभी | राजकुमार कुंभज बाँसुरी बजाता हूँतो हुंकार भी भरता हूँ उतनी-उतनी हीकि जितनी-जितनी खाता हूँ रोटियाँअपने हक, अपने हिस्से कीअपने हक, अपने हिस्से में किंतुलायक नहीं, नालायक हूँ मैंतोड़ता हूँ जंजीरे उन तमाम कैदियों कीजो पक्षधर स्वतंत्रता केऔर स्वतंत्रताएँ सभी।

मेरे विचार में विचार की तरह | राजकुमार कुंभज

मेरे विचार में विचार की तरह | राजकुमार कुंभज

मेरे विचार में विचार की तरह | राजकुमार कुंभज मेरे विचार में विचार की तरह | राजकुमार कुंभज बेहद खतरनाक हैं स्थितियाँप्रतिबंधों के बावजूद खनन करती हैं कंपनियाँट्रकों में भर-भर कर निर्यात किया जा रहा हैलौह अयस्क और लड़ने का माद्‍दाआखिर उस लोहे से लोहा लेगा कौनजो हरे-हरे वृक्ष के विरुद्ध ?बेहद खतरनाक हैं चांडाल … Read more

भरोसे में भरोसा | राजकुमार कुंभज

भरोसे में भरोसा | राजकुमार कुंभज

भरोसे में भरोसा | राजकुमार कुंभज भरोसे में भरोसा | राजकुमार कुंभज जो नहीं था अपना-सालगा एक दिन बेहद अपना-अपना-साफिर दे गया दगा एक दिनहजार-हजार टुकड़े करके दर्पण केसोचा नहीं था कभी किसी नेकि होगा यह भीकि मारा जाएगा भरोसे में भरोसाऔर भस्म हो जाएगीकागज की नाव।

मौसम-मौसम, शहर-शहर | राजकुमार कुंभज

मौसम-मौसम, शहर-शहर | राजकुमार कुंभज

मौसम-मौसम, शहर-शहर | राजकुमार कुंभज मौसम-मौसम, शहर-शहर | राजकुमार कुंभज मौसम-मौसम, शहर-शहरशहर-शहर का मौसम-मौसम अलग-अलग हैअलग-अलग हैं छाते, अलग-अलग हैं छतेंअलग-अलग हैं दीवार, अलग-अलग हैं दीवारेंअलग-अलग हैं सूर्योदय और सूर्यास्त सभी अलग-अलगहै अलग-अलग, बहुत कुछ, बहुत कुछ, लेकिनअलग-अलग नहीं है प्रेमवे ही आँखें, वे ही भाषाएँ आँखों कीजो सबकी, जिन्हें समझते हैं सब हीसब ही … Read more

जो, जितना, हँसता हूँ मैं | राजकुमार कुंभज

जो, जितना, हँसता हूँ मैं | राजकुमार कुंभज

जो, जितना, हँसता हूँ मैं | राजकुमार कुंभज जो, जितना, हँसता हूँ मैं | राजकुमार कुंभज जो, जितना, हँसता हूँ मैंउतना, उतना, उतना ही रोता हूँ एक दिन एकांत मेंएक दिन सूख जाता है भरा पूरा तालाबकुबेर का खजाना भी चुक जाता है एक दिनस्त्रियाँ भी कर देती हैं इनकार प्रेम करने सेउमंगों की उड़ान … Read more

छोड़ कर दुख पीछे | राजकुमार कुंभज

छोड़ कर दुख पीछे | राजकुमार कुंभज

छोड़ कर दुख पीछे | राजकुमार कुंभज छोड़ कर दुख पीछे | राजकुमार कुंभज छोड़ कर दुख पीछेलहरें निकल गई सदियों आगेआगे क्या, किसे पता ?किसे पता कि नहीं आएँगी लहरें वे ही, वे हीफिर-फिर छोड़ कर दुख पीछेपीछे से पीछे-पीछे आते हैं सिर्फ कंकालकंकाल मनुष्यों के या मवेशियों केफर्क नहीं करता है शासनशासन का … Read more

किस्सा पुराना नहीं है | राजकुमार कुंभज

किस्सा पुराना नहीं है | राजकुमार कुंभज

किस्सा पुराना नहीं है | राजकुमार कुंभज किस्सा पुराना नहीं है | राजकुमार कुंभज किस्सा पुराना नहीं है दुख की तरहएक चीख जैसी चीख है जो खोती जा रही हैदुख पुराने नहीं होते हैं किस्सों की तरहसाँसों में लहलहाते हैं साँसों की तरहकिस्सों में होते हैं दुखदुख में होते हैं किस्सेहजार दुख, हजार किस्सेहजार किस्से, … Read more

क्यों कहलाया तटस्थ मैं ? | राजकुमार कुंभज

क्यों कहलाया तटस्थ मैं ? | राजकुमार कुंभज

क्यों कहलाया तटस्थ मैं ? | राजकुमार कुंभज क्यों कहलाया तटस्थ मैं ? | राजकुमार कुंभज मुझे याद नहींकि मैं किसी नदी तट तक कभी गयाअथवा नहींफिर भी कहलाया तटस्थक्यों कहलाया तटस्थ मैं ?कुछ पता नहींअभी तक तो सबसे पहले हीपहुँचा हूँ वहाँ-वहाँ लेकर अपनी कविताजहाँ-जहाँ हुई हैं हत्याएँ।

एक ठहराव-सा असामान्य | राजकुमार कुंभज

एक ठहराव-सा असामान्य | राजकुमार कुंभज

एक ठहराव-सा असामान्य | राजकुमार कुंभज एक ठहराव-सा असामान्य | राजकुमार कुंभज नहीं रही कलाईबेहद गंदे हो गए हैं बर्तनएक ठहराव-सा आ गया है असामान्यसामान्य-सी चीजों में इन दिनोंइन दिनों इन बर्तनों कोअब उड़ा ही देना चाहिए तत्काललगाकर कोई विस्फोटक।

आत्मा में दरअसल | राजकुमार कुंभज

आत्मा में दरअसल | राजकुमार कुंभज

आत्मा में दरअसल | राजकुमार कुंभज आत्मा में दरअसल | राजकुमार कुंभज कपड़े धुल जाने सेधुल ही जाता है कपड़ों का मैलकिंतु क्या धुल जाने से मैल कपड़ों काधुल जाता है मैल मन का भीसवाल करो और खुद जान जाओआत्मा में दरअसल मैल कितनाधुल जाने के बाद भी।