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स्वतंत्रताएँ सभी | राजकुमार कुंभज

स्वतंत्रताएँ सभी | राजकुमार कुंभज स्वतंत्रताएँ सभी | राजकुमार कुंभज बाँसुरी बजाता हूँतो हुंकार भी भरता हूँ उतनी-उतनी हीकि जितनी-जितनी खाता हूँ रोटियाँअपने हक, अपने हिस्से कीअपने हक, अपने हिस्से में किंतुलायक नहीं, नालायक हूँ मैंतोड़ता हूँ जंजीरे उन तमाम कैदियों कीजो पक्षधर स्वतंत्रता केऔर स्वतंत्रताएँ सभी।