सेवाग्राम : एक शाम | प्रफुल्ल शिलेदार

सेवाग्राम : एक शाम | प्रफुल्ल शिलेदार

सेवाग्राम : एक शाम | प्रफुल्ल शिलेदार सेवाग्राम : एक शाम | प्रफुल्ल शिलेदार मिट्टी से लिपे हुए उस कवेलुदार झोंपड़ी सेतो तुम कब के निकल चुके होतुम चारदीवारी के भीतर समा जाने वाले तो कभी थे ही नहींतुम वहाँ पर बस कुछ पल के लिए रुके थेइसलिए व्यर्थ है तुम्हें वहाँ ढूँढ़नाक्योंकि तुम तो … Read more

निर्वासन | प्रफुल्ल शिलेदार

निर्वासन | प्रफुल्ल शिलेदार

निर्वासन | प्रफुल्ल शिलेदार निर्वासन | प्रफुल्ल शिलेदार जेट के विशाल पेट मेंमैं विचरता हूँजमीन से बारह हजार मीटर ऊँचाई परउसकी तल पर बिछा नरम कालीनमुझे जमीन जैसा सहारा देता हैजैसे धरती पर चलते हुएघास से भरा मैदानउसके विशाल पंखराजहंस की शान सेहवा काट रहे हैंहालाँकि उसके कठिन कवच सेभीतर की गरमाहट बनी हुई हैकितना … Read more

द्वेष | प्रफुल्ल शिलेदार

द्वेष | प्रफुल्ल शिलेदार

द्वेष | प्रफुल्ल शिलेदार द्वेष | प्रफुल्ल शिलेदार वह अनजाने में हो रहीईर्ष्या से आता हैवह अभाव से आता हैउसे लाँघकरन-भाव की ओर जानाआसान नहीं होतायह सहजता से किया नहीं जा सकतादहशत का चलनी सिक्काअँगूठे से उड़ाकरभीड़ के साथ मगरूरी से खेलने वालों केअनदिखे चेहरे कायह एक दयनीय पक्ष हैहर किसी को बचपन में हीसभी … Read more

चींटी | प्रफुल्ल शिलेदार

चींटी | प्रफुल्ल शिलेदार

चींटी | प्रफुल्ल शिलेदार चींटी | प्रफुल्ल शिलेदार एक चींटीसीधी मेरे सामने खड़ी होकरजोर-जोर से चिल्ला कर बता रही हैमेरे पीठ पीछे जो बाँध हैवह ऊँचा हो रहा हैऔर फूटने वाला है मेंढक के पेट की तरहचींटी की आवाज कोमैं हमेशा अनसुना करता हूँमन ही मन हँसता रहता हूँउसका व्याकुल होकर बतानाउसी के जैसा हल्का … Read more

कभी नहीं था आसान | प्रफुल्ल शिलेदार

कभी नहीं था आसान | प्रफुल्ल शिलेदार

कभी नहीं था आसान | प्रफुल्ल शिलेदार कभी नहीं था आसान | प्रफुल्ल शिलेदार एक कविदंगे मेंभरे रास्ते के बीचोबीचगर्दन सीधी कर खड़ा हैदंगाई उसके बारे में कोई राय नहीं बना पा रहे हैंभीड़ ने उसे घेर रखा हैसवालों की बौछार हो रही है उस परकवि को कुछ याद नहीं आताअपना-पराया कुछ नहीं सूझताअपनी जाति … Read more

उसके खिलौनों में घुसा एक मामूली सा चूहा | प्रफुल्ल शिलेदार

उसके खिलौनों में घुसा एक मामूली सा चूहा | प्रफुल्ल शिलेदार

उसके खिलौनों में घुसा एक मामूली सा चूहा | प्रफुल्ल शिलेदार उसके खिलौनों में घुसा एक मामूली सा चूहा | प्रफुल्ल शिलेदार खूब खेलती रही वहऔर सो गई चुपचाप थक करउसके तमाम खिलौने बिखरे पड़े हैं पूरे कमरे मेंअब तो खिलौने भी सो चुके होंगेरात हो जाने पर जैसे सो जाती है पूरी दुनियाउसका बस्ता … Read more

उपन्यास में झाँक कर देखा | प्रफुल्ल शिलेदार

उपन्यास में झाँक कर देखा | प्रफुल्ल शिलेदार

उपन्यास में झाँक कर देखा | प्रफुल्ल शिलेदार उपन्यास में झाँक कर देखा | प्रफुल्ल शिलेदार उपन्यास में झाँक कर देखागहरे कुएँ जैसी सुरंग के तल मेंलेखक जगमगाता उजाला सजाए हुए थासारे किरदार रोजमर्रा की जिंदगी जी रहे थेप्रसंगों का रहट चल रहा थाइतनी उत्कटता से किरदार जीवन जी रहे थेजितना हम अपनी जिंदगी में … Read more

उनकी दुनिया का काला घना आकाश | प्रफुल्ल शिलेदार

उनकी दुनिया का काला घना आकाश | प्रफुल्ल शिलेदार

उनकी दुनिया का काला घना आकाश | प्रफुल्ल शिलेदार उनकी दुनिया का काला घना आकाश | प्रफुल्ल शिलेदार घर की छत तोदीवार तक आकर थम जाती हैलेकिन सामने का मिट्टी का आँगन भीघर का ही हिस्सा हैघर से आँगन लाँघ कर बाहर निकल करजहाँ भी जाओथोड़ा न थोड़ा घर साथ आ ही जाता हैआँगन से … Read more

आत्मकथा लिखने से पहले | प्रफुल्ल शिलेदार

आत्मकथा लिखने से पहले | प्रफुल्ल शिलेदार

आत्मकथा लिखने से पहले | प्रफुल्ल शिलेदार आत्मकथा लिखने से पहले | प्रफुल्ल शिलेदार अपने होने के सभी निशान तलाशताबेतहाशा भटकानजदीकियों और दुराव के तमाम सुबूतजुटाता चला गयागले में एक लेंस ही लटका दीचलते-चलते जाँचता गयाहर राह कदमों के निशानछू सकनेवाली हर चीज को गौर से जाँचाबारीकी से परखे उँगलियों के निशानउसाँसों के संकेत पाने … Read more