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सेवाग्राम : एक शाम | प्रफुल्ल शिलेदार

सेवाग्राम : एक शाम | प्रफुल्ल शिलेदार सेवाग्राम : एक शाम | प्रफुल्ल शिलेदार मिट्टी से लिपे हुए उस कवेलुदार झोंपड़ी सेतो तुम कब के निकल चुके होतुम चारदीवारी के भीतर समा जाने वाले तो कभी थे ही नहींतुम वहाँ पर बस कुछ पल के लिए रुके थेइसलिए व्यर्थ है तुम्हें वहाँ ढूँढ़नाक्योंकि तुम तो […]