आत्मकथा लिखने से पहले | प्रफुल्ल शिलेदार
आत्मकथा लिखने से पहले | प्रफुल्ल शिलेदार

आत्मकथा लिखने से पहले | प्रफुल्ल शिलेदार

आत्मकथा लिखने से पहले | प्रफुल्ल शिलेदार

अपने होने के सभी निशान तलाशता
बेतहाशा भटका
नजदीकियों और दुराव के तमाम सुबूत
जुटाता चला गया
गले में एक लेंस ही लटका दी
चलते-चलते जाँचता गया
हर राह कदमों के निशान
छू सकनेवाली हर चीज को गौर से जाँचा
बारीकी से परखे उँगलियों के निशान
उसाँसों के संकेत पाने के लिए
परखनली में भर लिए
सभी खास जगहों के हवा के नमूने

बीती जिंदगी की सैकड़ों गहरी रातों के
घने अंधकार में
तेज टॉर्च की रोशनी के बीच तलाशे
सपनों के रंग बिरंगे टुकड़े
बुनियादी ब्यौरे हासिल करने के मकसद से
हजारों फाइलें उलट डाली
संदर्भ के लिए
सैकड़ों किताबों में भी निशान लगाए
बचपने की या अभी की
एकाध तसवीर के लिए
पुराने एलबमों की तलाश की
साइबर स्पेस में भी घुसा
इस लिहाज से कि कोई वेबसाईट ही हाथ लगे
खँगाली दिमाग की सारी नसें
धुन-धुन कर एक-एक सेकेंड
लगा दिए ढेर
तफसील के लिए तप किया
काल का कचूमर निकाल डाला
उलीच डाले दिन और रात
अब बैठा हूँ
भाषा की धीमी आँच पर
भाखरी उलटता हुआ सा
सब कुछ को समेट लेने वाली
आत्मकथा लिखने से पहले।

(मराठी से हिंदी अनुवाद स्वयं कवि के द्वारा) 

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *