समय की नदी | माहेश्वर तिवारी

समय की नदी | माहेश्वर तिवारी

समय की नदी | माहेश्वर तिवारी समय की नदी | माहेश्वर तिवारी हम समय की नदीतैर कर आ गएअब खड़े हैं जहाँवह जगह कौन है। तोड़ते-जोड़तेहर नियम, उपनियमउत्सवों के जिएसाँस-दर-साँस हम एक पूरी सदीतैर कर आ गएअब खड़े हैं जहाँवह सतह कौन है। होंठ परथरथराती हँसीरोप करआँसुओं को पियाआँख में उम्र भर हम कठिन त्रासदीतैर … Read more

स्कूलों से | माहेश्वर तिवारी

स्कूलों से | माहेश्वर तिवारी

स्कूलों से | माहेश्वर तिवारी स्कूलों से | माहेश्वर तिवारी सुबह गए थे खिलते ताजा फूलों सेथककर लौट रहेबच्चे स्कूलों से। सड़क पार करतेडरते हैंबच्चे किश्तों मेंमरते हैंगुजरा करते हर दिनघने बबूलों से। विज्ञापन हैरोड-रोड मेंफँसे हुए हैंड्रेस कोड मेंघबराते हैंछोटी-छोटी भूलों से। खाली टिफिन,बोतलें खालीरक्खी तही-तहाईगालीटकराते हैं जब भीखाली झूलों से।

याद तुम्हारी | माहेश्वर तिवारी

याद तुम्हारी | माहेश्वर तिवारी

याद तुम्हारी | माहेश्वर तिवारी याद तुम्हारी | माहेश्वर तिवारी याद तुम्हारीजैसे कोई कंचन कलश भरेजैसे कोई किरण अकेलीपर्वत पार करे लौट रही गायों केसँग-सँगयाद तुम्हारी आतीऔर धूल केसँग-सँगमेरे माथे को छू जातीदर्पण में अपनी ही छाया-सीरह-रह उभरेजैसे कोई हंस अकेलाआँगन में उतरे जब इकला कपोत काजोड़ाकँगनी पर आ जाएदूर चिनारों केवन सेकोई वंशी स्वर … Read more

मैना री | माहेश्वर तिवारी

मैना री | माहेश्वर तिवारी

मैना री | माहेश्वर तिवारी मैना री | माहेश्वर तिवारी मैना रीपिंजरे की भाषा मत बोल सारा आकाश यहतुम्हारा हैफूलों की खुशबू से तरआवाजों की कोमल टहनीधड़कन तेरीहरियाली है तेरा घरमैना रीअपने को भीतर से खोल भला नहीं लगता हैकंठ से तुम्हारे अबसुने हुए को बस दुहरानास्वर के गोपन रेशे-रेशे सेपरिचित होठीक नहीं उसे भूल … Read more

मैं हूँ | माहेश्वर तिवारी

मैं हूँ | माहेश्वर तिवारी

मैं हूँ | माहेश्वर तिवारी मैं हूँ | माहेश्वर तिवारी आसपासजंगली हवाएँ हैंमैं हूँपोर-पोरजलती समिधाएँ हैंमैं हूँ आड़े-तिरछेलगावबनते जातेस्वभावसिर धुनतीहोठ की ऋचाएँ हैंमैं हूँ अगले घुटनेमोड़ेझाग उगलतेघोड़ेजबड़ों मेंकसती बल्गाएँ हैंमैं हूँ

बहुत दिनों के बाद | माहेश्वर तिवारी

बहुत दिनों के बाद | माहेश्वर तिवारी

बहुत दिनों के बाद | माहेश्वर तिवारी बहुत दिनों के बाद | माहेश्वर तिवारी बहुत दिनों के बादलौट कर घर में आना।लगता किसी पेड़ काफूलों, पत्तों, चिड़ियों से भर जाना। कपड़ों, बैगदेह से सारीगर्द झाड़ना गए सफर कीफिर सेशामिल हो जानाउठकर केदिन चर्चा में घर की बात-चीत केटुकड़े,बहसों का लेकर कुछ ताना-बाना। जिन्हें पहन करबाहर … Read more

बंदिशें-आलाप | माहेश्वर तिवारी

बंदिशें-आलाप | माहेश्वर तिवारी

बंदिशें-आलाप | माहेश्वर तिवारी बंदिशें-आलाप | माहेश्वर तिवारी पक गए सेलग रहे हैंइस उमर में,भैरवी की बंदिशें, आलाप। शब्द की यात्राहुई है स्वरों मेंतब्दीलजिस तरह सेअतल की गहराइयों मेंजल रही होसूर्य की कंदीलपड़ रही हैसाँस के बजते मृदंगों परता धिनक, धिन,ता धिनक धिन थाप। यह स्वरों कीयात्रा लगतीआहटें जैसेउजालों कीछेद रहे कोहरे,धुंध थके हर तरफ … Read more

पहरे कड़े हैं | माहेश्वर तिवारी

पहरे कड़े हैं | माहेश्वर तिवारी

पहरे कड़े हैं | माहेश्वर तिवारी पहरे कड़े हैं | माहेश्वर तिवारी छल कईबारीक शब्दों केहमें घेरे खड़े हैं। लिए बंसी मेंनए चारेहर तरफ हैंखड़े मछुआरे चील केहिंसक कई पंजेहमें दाबे पड़े हैं। झेलतीआश्वासनों के पुलहै नदी भीबेतरह व्याकुल खुरदुरी-सीरेत के चारों तरफपहरे कड़े हैं

तिनके हुए | माहेश्वर तिवारी

तिनके हुए | माहेश्वर तिवारी

तिनके हुए | माहेश्वर तिवारी तिनके हुए | माहेश्वर तिवारी धूप थे, बादल हुए,तिनके हुएसैकड़ों हिस्सेगए दिन के हुए ढल गईकिरनों नहाई दोपहरदफ्तरों सेलौटकर आया शहरहम कहींउनके हुएइनके हुए उदासी कीपर्त-सी जमने लगीरेंगती-सीभीड़ फिर थमने लगीहाथ कंधों पर पड़ेजिनके हुए

पंजे चीतों के | माहेश्वर तिवारी

पंजे चीतों के | माहेश्वर तिवारी

पंजे चीतों के | माहेश्वर तिवारी पंजे चीतों के | माहेश्वर तिवारी शहरों सेगाँवों तकदिखते पंजे चीतों के। सहमें हुए मेमनेदुबके जाकर झाड़ी मेंगुर्राहट पसरी हैजंगल और पहाड़ी में नयाकथानक आकरदिखते पंजे चीतों के। एक अजीब भयावहचुप्पी पहने खड़ा समयतेजी से डग भरतापा पहुँचता है संशय नईभूमिका रोजपरखते पंजे चीतों के।