Posted inPoems

बनारस | होर्हे लुईस बोर्हेस

बनारस | होर्हे लुईस बोर्हेस बनारस | होर्हे लुईस बोर्हेस कोई भ्रम, कोई तिलिस्मजैसे आईने में उगता किसी उपवन का बिंब,इन आँखों से अदेखाएक शहर, शहर मेरे ख्वाबों का,जो बटता है फासलों कोरेशों से बटी रस्सी की मानिंदऔर करता रहता है परिक्रमाअपने ही दुर्गम भवनों की। मंदिरों, कूड़े के पहाड़ों, चौक और कारागारों तक सेअँधेरे […]