हाशियों का घर | जगदीश श्रीवास्तव

हाशियों का घर | जगदीश श्रीवास्तव

हाशियों का घर | जगदीश श्रीवास्तव हाशियों का घर | जगदीश श्रीवास्तव अँधेरों के नामकर दी है वसीयतहाशियों का शहरजब से हो गया है। इश्तहारों-सी टँगी दीवाल पर दहशतहवाओं में जहर अब घुलने लगा हैगली सड़क चौराहे सुनसान रातों मेंएक आदमखोर तम मिलने लगा है इजाजत ये समयअब देता नहीं हैजो बढ़ा आगेकहीं अब खो … Read more

हवाओं के बीच है वह कौन | जगदीश श्रीवास्तव

हवाओं के बीच है वह कौन | जगदीश श्रीवास्तव

हवाओं के बीच है वह कौन | जगदीश श्रीवास्तव हवाओं के बीच है वह कौन | जगदीश श्रीवास्तव भीड़ का अपना गणित हैहाशिए पर जिंदगी ठहरी हुई। ढूँढ़ने निकले जिसे हमखो गया वह भीड़ में ऐसेडाल सूखी हो गईउड़ गए पंछी अचानकनीड़ से जैसे हथेली पर स्वप्न टूटे रह गएयाद की खाईं अधिक गहरी हुई। … Read more

वक्त की दहलीज पर | जगदीश श्रीवास्तव

वक्त की दहलीज पर | जगदीश श्रीवास्तव

वक्त की दहलीज पर | जगदीश श्रीवास्तव वक्त की दहलीज पर | जगदीश श्रीवास्तव वक्त की दहलीज परठहरे हुए। हर शख्स गिरफ्तार हैअपने ही जाल मेंडस रहे हैं घरों कोदीवार के साएपाँव में सड़कों केइतने पड़ गए छालेचिमनियों के धुएँ सेचेहरे हुए कालेभिखारी फुटपाथ पर बहरे हुए। हादसों के शहर मेंक्या क्या ? नहीं होताजहन … Read more

भूख जहाँ दरवाजा खोले | जगदीश श्रीवास्तव

भूख जहाँ दरवाजा खोले | जगदीश श्रीवास्तव

भूख जहाँ दरवाजा खोले | जगदीश श्रीवास्तव भूख जहाँ दरवाजा खोले | जगदीश श्रीवास्तव भूख जहाँ दरवाजा खोलेरोशनदान रहे अनबोलेपरदों की कट गई भुजाएँअंधी दीवारें चिल्लाएँसन्नाटा क्यूँ आँख दिखाकरमुझ पर हँसता है आँखों में चुभते हैं दानेपत्थर को रखकर सिरहानेआदम सोता हैजहर हो गई जहाँ दवाईखाल खींचते रहे कसाईजिसे देखिए वही राह में काँटे बोता … Read more

बुनियादें हिलती हैं | जगदीश श्रीवास्तव

बुनियादें हिलती हैं | जगदीश श्रीवास्तव

बुनियादें हिलती हैं | जगदीश श्रीवास्तव बुनियादें हिलती हैं | जगदीश श्रीवास्तव बाहर का कोलाहलभीतर का अंधियाराहर दिन ही डसता है सूनापन हमको फिरबाँहों में कसता है। अपनों का दर्द लिएघिर गए सवालों मेंतने हुए चेहरों के बीच से गुजरना हैहाथ की लकीरों नेइस तरह काटा हैआग की नदी में अब रोज उतरना हैमंजिल है … Read more

प्रश्नवाचक हाशिए | जगदीश श्रीवास्तव

प्रश्नवाचक हाशिए | जगदीश श्रीवास्तव

प्रश्नवाचक हाशिए | जगदीश श्रीवास्तव प्रश्नवाचक हाशिए | जगदीश श्रीवास्तव प्याज के छिलकेसरीखी जिंदगीप्रश्नवाचक चिह्न बनकर रह गई। गलत खत भेजे पते गुमनाम थेकबूतर उड़ते रहेआकाश मेंकौन किसको दोष देगा अब यहाँघुन लगा हैटूटते विश्वास में मील के पत्थरसभी टूटे मिलेरेत में पदचिह्न बनकर रह गई। अगले सूरज को पाने के लिएबढ़ रहे हैं काफिलेफुटपाथ … Read more

धूप तपी चट्टानों पर | जगदीश श्रीवास्तव

धूप तपी चट्टानों पर | जगदीश श्रीवास्तव

धूप तपी चट्टानों पर | जगदीश श्रीवास्तव धूप तपी चट्टानों पर | जगदीश श्रीवास्तव धूप तपी चट्टानों पर हमनंगे पाँव चले। बनजारे आवाराबादल का विश्वास नहींरहे पीठ पर घर को लादेहम इतिहास नहींमंजिल ही मंजिल को तरसेमन की प्यास तले। मन की टूटी दीवारों परइश्तहार टाँगेगिरवी रखी जिंदगी से अबकोई क्या माँगे ?मेहनत का सूरज … Read more

चिमनियों की नोक पर | जगदीश श्रीवास्तव

चिमनियों की नोक पर | जगदीश श्रीवास्तव

चिमनियों की नोक पर | जगदीश श्रीवास्तव चिमनियों की नोक पर | जगदीश श्रीवास्तव धुआँ ही धुआँ चिमनियों का घरडूबता शहर। लोग जहाँ ढोते हैं रिश्ते अनामकागजी बिछोनों पर लेट गई शामसूरज ने काट दिए चाँदनी के परभूल गए हम आँगन माटी के घरहमको ही डसता हैउम्र का जहर। दर्द की सलीबों पर लटकी है … Read more

आदमी के नाम पर | जगदीश श्रीवास्तव

आदमी के नाम पर | जगदीश श्रीवास्तव

आदमी के नाम पर | जगदीश श्रीवास्तव आदमी के नाम पर | जगदीश श्रीवास्तव भूमिकाएँ बदली गईंपरिशिष्ट भी जोड़े गएआदमी के नाम पर बसहाशिए छोड़े गए। तब घरों में कैद है इनसानियतसुरंगों से निकल भी पाती नहीं हैबस्तियों में आग फैली हैधुएँ में सारा शहर ही खो गया हैहर तरफ आतंक के साएखून में डूबी … Read more