संशय | अनुकृति शर्मा संशय | अनुकृति शर्मा तुम्हारे होंठों परउगे हैं प्रश्नऔर मन में सनातन संशय,धूप और फूल ज्योंये मंगलमय हैं।तुम्हारे चौगिर्दलहरती हैं स्मृतियाँऔर अतीत के अनबीते दुखलोबान धूम ज्योंये पावनकारी हैं।तुम्हारे शब्दों मेंजो बजता है वेणु-नादकाँपता है जिससेमंत्रबिद्ध पवन,शंकाओं से परेवही सत्य है।
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