सुनयना ! तेरे नैन बड़े बेचैन ! | अल्पना मिश्र

सुनयना! तेरे नैन बड़े बेचैन! | अल्पना मिश्र

सुनयना! तेरे नैन बड़े बेचैन! | अल्पना मिश्र – Sunayana ! Tere nain bade bechen ! सुनयना ! तेरे नैन बड़े बेचैन ! | अल्पना मिश्र आदरणीया दी, कब से यह पत्र लिखना चाह रही थी। बार-बार कुछ स्मृतियाँ, बचपन की स्मृतियाँ कौंधती थीं। उन्हें आपसे पूछने का, सही-सही जानने का मन होता था। बहुत … Read more

मिड डे मील | अल्पना मिश्र

मिड डे मील | अल्पना मिश्र

मिड डे मील | अल्पना मिश्र – Mid De Mil मिड डे मील | अल्पना मिश्र यहाँ जो यह इमारत है, विशालकाय नहीं है, न ही समुद्र जैसा जल उसके सामने फैला है। यह टीन के छतवाले लंबे से बरामदेवाली जगह है, जिसमें बहुत छोटी सी खिड़की वाला एक स्टोरनुमा कमरा भी जुड़ा है। आस-पास … Read more

भीतर का वक्त | अल्पना मिश्र

भीतर का वक्त | अल्पना मिश्र

भीतर का वक्त | अल्पना मिश्र – Bhitar Ka waqt भीतर का वक्त | अल्पना मिश्र ट्रेन सामने थी। वैशाली एक्सप्रेस। उसके ठीक बगल में खड़े थे हम। छोटी बहन, मेरे पिता, मैं और वह बच्चा, जो दस बरस के करीब था। पिता चुपचाप जाकर बेंच पर बैठ गए थे। कुछ उदास। मुझे जाना ही … Read more

भय | अल्पना मिश्र

भय | अल्पना मिश्र

भय | अल्पना मिश्र – Bhay भय | अल्पना मिश्र ‘ये वही हैं?’ बस यों ही पूछ लिया था मैंने। फोटो फ्रेम में मढ़ी थी और उस पर लाल गेंदे के फूलों की मुरझाई माला लटक रही थी। घूरती हुई दो आँखों और ऐंठी हुई मूँछों के सिवाय तस्वीर का रेशा-रेशा मरियल, बेजान था। चावल … Read more

बेदखल | अल्पना मिश्र

बेदखल | अल्पना मिश्र

बेदखल | अल्पना मिश्र – Bedkhal बेदखल | अल्पना मिश्र वे सच, जो सच के भीतर छिपे रहते हैं, दिखते नहीं, जिन्हें बेदखल मान लिया जाता है, वे सच, अपनी अनुपस्थिति में भी उपस्थित होते हैं। निमित्तमात्रं भव सव्यसाची उर्फ प्रतिमा दी का आना :- प्रतिमा दी, जो वर्षों से एक खास खाली समय में … Read more

बेतरतीब | अल्पना मिश्र

बेतरतीब | अल्पना मिश्र

बेतरतीब | अल्पना मिश्र – Betartib बेतरतीब | अल्पना मिश्र ‘हे कर्णधारो! अपने माँ-बाप को प्रथम पुरुष की तरह देखो। सत-असत का विवेक तभी संभव है।’ इस आप्त वाक्य से प्रेरणा लेकर, कर्णधारों में अपने को मानते हुए हमने अपने माँ-बाप का जीवन परिक्षालन करना शुरू किया। हम चार जने यानी तीन लड़कियाँ और एक … Read more

छावनी में बेघर | अल्पना मिश्र

छावनी में बेघर | अल्पना मिश्र

छावनी में बेघर | अल्पना मिश्र – Chavni Mai Beghar छावनी में बेघर | अल्पना मिश्र बाहर जो हो रहा होता है, वह मानो नींद में हो रहा होता है। जो नींद में हो रहा होता है, वह बाहर गुम गया-सा लगता है। उस गुम गए को तलाशती रहती मैं यहाँ-वहाँ खटर-पटर करती रहती हूँ। … Read more

कथा के गैरजरूरी प्रदेश में | अल्पना मिश्र

कथा के गैरजरूरी प्रदेश में | अल्पना मिश्र

कथा के गैरजरूरी प्रदेश में | अल्पना मिश्र – Katha Ke Gairjaruri Pradesh Mai कथा के गैरजरूरी प्रदेश में | अल्पना मिश्र ‘वहाँ क्या कर रही हो?’ यही वह आवाज है, जो उनके भीतर के सारे स्वरों को तोड़ देती है। कितनी मुश्किल से एक सुर पकड़कर साज पर बैठाती है और पलक झपकते सब … Read more

उपस्थिति | अल्पना मिश्र

उपस्थिति | अल्पना मिश्र

उपस्थिति | अल्पना मिश्र – Upasthithi उपस्थिति | अल्पना मिश्र इस बार मैं बहुत सावधानी से चल रही हूँ। पैर दबाकर, एकदम धीरे। मेरी आहट, इस बार वह जान नहीं पाएगी। मैंने अपने दोनों हाथ पीछे कर लिए हैं। आँखे उस पर टिका ली हैं और बहुत धीरे, सचमुच बड़ी सावधानी से आगे बढ़ रही … Read more

इस जहाँ में हम | अल्पना मिश्र

इस जहाँ में हम | अल्पना मिश्र

इस जहाँ में हम | अल्पना मिश्र – Is Jaha Mai Ham इस जहाँ में हम | अल्पना मिश्र कल ही दफ्तर में यह सर्कुलर घूमा है कि किन-किन कर्मचारियों को कंप्यूटर लर्निंग प्रोग्राम के लिए जाना है। कुल पाँच लोग तो कल से ही जाएँगे, फिर पाँच लोग एक हफ्ते बाद। जो छूट जाएगा, … Read more