शहर के अंधियारे विस्तार के पीछे | अलेक्सांद्र ब्लोक शहर के अंधियारे विस्तार के पीछे | अलेक्सांद्र ब्लोक शहर के अंधियारे विस्तार के पीछेखो गई थी सफेद बर्फअंधकार से हो गई थी मित्रताधीमे हो गए थे मेरे कदम। काले शिखरों परगड़गड़ाहट लाई थी बर्फउठ रहा था एक आदमीअंधकार में से मेरी तरफ। छिपाता मुझसे अपना […]
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वे पढ़ते कविताएँ | अलेक्सांद्र ब्लोक
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