श्रृंगार | आलोक धन्वा श्रृंगार | आलोक धन्वा तुम भीगी रेत परइस तरह चलती होअपनी पिंडलियों से ऊपरसाड़ी उठाकरजैसे पानी में चल रही हो!क्या तुम जान बूझ कर ऐसाकर रही होक्या तुम श्रृंगार कोफिर से बसाना चाहती हो?