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सवाल ज़्यादा है | आलोक धन्वा

सवाल ज़्यादा है | आलोक धन्वा सवाल ज़्यादा है | आलोक धन्वा पुराने शहर उड़नाचाहते हैंलेकिन पंख उनके डूबते हैंअक्सर खून के कीचड़ में! मैं अभी भीउनके चौराहों पर कभीभाषण देता हूँजैसा कि मेरा काम रहावर्षों सेलेकिन मेरी अपनी ही आवाज़अबअजनबी लगती है मैं अपने भीतर घिरता जा रहा हूँ सवाल ज़्यादा हैंऔर बात करने […]