शमशेर की कविता | दिविक रमेश
शमशेर की कविता | दिविक रमेश

शमशेर की कविता | दिविक रमेश

शमशेर की कविता | दिविक रमेश

छूइए
मगर हौले से
कि यह कविता
शमशेर की है।

और यह जो
एक-आध पांखुरी
बिखरी सी पड़ी है न?
इसे भी
न हिलाना।

बहुत मुमकिन है
किसी मूड में
शमशेर ने ही
इसे ऐसे रक्खा हो।

शरीर में जैसे
हर चीज़ अपनी जगह है
शमशेर की कविता है।

देखो
शब्द समझ
कहीं पांव न रख देना

अभी गीली है

जैसे आंगन
मां ने माटी से
अभी-अभी लीपा है
शमशेर की कविता है।

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