हैरान थी हिन्दी | दिविक रमेश

हैरान थी हिन्दी | दिविक रमेश

हैरान थी हिन्दी | दिविक रमेश हैरान थी हिन्दी | दिविक रमेश हैरान थी हिन्दी उतनी ही सकुचाईलजाईसहमी सहमी सीखड़ी थीसाहब के कमरे के बाहरइज़ाजत मांगतीमांगती दुआपी.ए. साहब कीतनिक निगाह की। हैरान थी हिन्दीआज भी आना पड़ा था उसेलटक करखचाखच भरीसरकारी बस के पायदान परसंभाल-संभाल करअपनी इज्जत का आंचल हैरान थी हिन्दीआज भी नहीं जा … Read more

सलमा चाची | दिविक रमेश

सलमा चाची | दिविक रमेश

सलमा चाची | दिविक रमेश सलमा चाची | दिविक रमेश पड़ोस में ही रहती हैं सलमा चाची औरचाची की जुबान मेंतीन-तीनसांडनी-सी बेटियां। सलमा चाचीहमने तो सुना नहीं —कभी याद भी करती हों अपने खसम कोया मुंहजली सौत को। पड़ोस में ही रहती हैं सलमा चाचीपार्क के उस नुक्कड़ वाली झोंपड़ी में।तीन-तीन बेटियां हैं सांड़नी-सीसलमा चाची … Read more

सुरताल | दिविक रमेश

सुरताल | दिविक रमेश

सुरताल | दिविक रमेश सुरताल | दिविक रमेश समझथी भी कहाँ सुरताल की।मैंने तो मिला लिया थास्वरों में स्वरयूँ ही। यूँ हीगाता रहा पगडंडियों से खेतों तकखेतों सेखलिहानों तक। बस गाता रहाआकाश, धरती, सब कुछकहाँ मालूम था मुझेसंगीतयूं बन जाता है आदमी।

सम्पूर्ण यात्रा | दिविक रमेश

सम्पूर्ण यात्रा | दिविक रमेश

सम्पूर्ण यात्रा | दिविक रमेश सम्पूर्ण यात्रा | दिविक रमेश प्यास तो तुम्हीं बुझाओगी नदीमैं तो सागर हूंप्यासा अथाह। तुम बहती रहोमुझ तक आने को।मैं तुम्हें लूंगा नदीसम्पूर्ण। कहना तुम पहाड़ सेअपने जिस्म पर झड़ासम्पूर्ण तपस्वी परागघोलता रहे तुममें। तुम सूत्र नहीं हो, नदी, न ही सेतुसम्पूर्ण यात्रा हो मुझ तकजागे हुए देवताओं की चेतना … Read more

संबंध | दिविक रमेश

संबंध | दिविक रमेश

संबंध | दिविक रमेश संबंध | दिविक रमेश सोचता हूंन होतीं अगर खड़ी ये संबंधों की दीवारें मेरी हिमायत मेंतो झड़ चुके होते तमाम-तमाम संबोधन कभी केढह ही चुका होता कब का घर बावजूद मजबूत नींवों के। मिस्सर जी बताएं आप हीचढ़ लेते ही बिटिया के डिब्बे मेंक्यों हो जाती है रेल की रेल अपनी … Read more

शर्म आती है कि…. | दिविक रमेश

शर्म आती है कि.... | दिविक रमेश

शर्म आती है कि…. | दिविक रमेश शर्म आती है कि…. | दिविक रमेश जितना जाना है तुम्हारे बारे मेंकि पढ़ा है जितना धर्म-ग्रंथों मेंवह तो इज़ाजत नहीं देता तुम्हें कि दिखो ऐसेजैसे दिखे 2011 के ढहते-चरमराते जापान में। तुम इंसान तो नहीं ही कहे गए हो नकि मान लूं कोई क्रूर आतंकवादी हो तुम,ज़ालिम … Read more

शमशेर की कविता | दिविक रमेश

शमशेर की कविता | दिविक रमेश

शमशेर की कविता | दिविक रमेश शमशेर की कविता | दिविक रमेश छूइएमगर हौले सेकि यह कविताशमशेर की है। और यह जोएक-आध पांखुरीबिखरी सी पड़ी है न?इसे भीन हिलाना। बहुत मुमकिन हैकिसी मूड मेंशमशेर ने हीइसे ऐसे रक्खा हो। शरीर में जैसेहर चीज़ अपनी जगह हैशमशेर की कविता है। देखोशब्द समझकहीं पांव न रख देना … Read more

शक्ति भी है अकेला आदमी | दिविक रमेश

शक्ति भी है अकेला आदमी | दिविक रमेश

शक्ति भी है अकेला आदमी | दिविक रमेश शक्ति भी है अकेला आदमी | दिविक रमेश बहुत भयभीत कर सकता हैएक अकेला-सा शब्दअकेला।शक्ति का जर्रा-जर्रा निकाल कर तन सेझुका सकता है कितनी ही शक्तियों के सामनेघेर सकता है कितने ही भयों से घिरी घटनाओं सेजिन्हें अभी होना था। अकेला आदमी अगर हो जाए अकेला अपने … Read more

वह किस्सा ही क्या जो चलता नहीं रहे | दिविक रमेश

वह किस्सा ही क्या जो चलता नहीं रहे | दिविक रमेश

वह किस्सा ही क्या जो चलता नहीं रहे | दिविक रमेश वह किस्सा ही क्या जो चलता नहीं रहे | दिविक रमेश किस्सा यूं हैकि गवाह पाण्डेय –और चौंक पाण्डेयपुर कारास्ता-सारनाथऔर धूल से अँटा, मुश्किल से पहचान में आता ‘ऑटो’और हड्डियों को संभालते-संभालते ऑटो में,मैं और पाण्डेय। लाज से या कहूं शर्म से गड़ी जाती … Read more

वह औरत : मेरी मां | दिविक रमेश

वह औरत : मेरी मां | दिविक रमेश

वह औरत : मेरी मां | दिविक रमेश वह औरत : मेरी मां | दिविक रमेश वह औरतजिसे तुम हव्वा कहते होमेरी मां है,मां – एक गुदगुदा अहसासखुली आँखों मेंजैसे पूरा आकाश।खड़ी हो ज्यों धूप मेंसहमी-सी, भयाक्रांतकोई बड़ी चिड़ियापंख फुलाएदुबकाकरनन्हा-सा शिशु। हाँतुम्हें जो दौड़ती है काटनेतुम्हारे शब्दों में कुतियामेरी मां हैमेरी रक्षक। हवा मेंगन्दे नाखूनों … Read more