सावित्री | नरेंद्र जैन
सावित्री | नरेंद्र जैन

सावित्री | नरेंद्र जैन

सावित्री | नरेंद्र जैन

आठ बरस की सावित्री 
बर्तन माँजती है 
अपने साँवले हाथों से जमाती है बर्तन 
खिलौनों की तरह 
अभी दुबेजी के यहाँ से आई है 
अब गुप्ताजी के घर बासन माँजेगी 
सावित्री की माँ राधोबाई भी यही काम करती है 
अनुभवी है इसलिए निपटाती है पाँच घरों के बर्तन 
राधोबाई कहती है कि उसकी माँ संतोबाई 
और नानी मलकाबाई भी किया करती थी यही काम 
मलकाबाई तो अंग्रेज साहब बहादुर की बरौनी थी 
आजादी से पहले 
वक्त के इस लंबे दौर में बदलती गई दुनिया 
आठ बरस की सावित्री 
फिर भी तपती धूप और जाड़े में बर्तन माँजती है 
देखते देखते हो जाएगा 
ब्याह सावित्री का 
दुधमुँहे बच्चे को चिपटाये 
साफ करेगी यह थालियों की जूठन 
आजादी का अर्थ 
फिर भी 
सावित्री के लिए नहीं होगा 
थालियों की जूठन से ज्यादा

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