सानिहा | असरारुल हक़ मजाज़
सानिहा | असरारुल हक़ मजाज़

सानिहा | असरारुल हक़ मजाज़

सानिहा | असरारुल हक़ मजाज़

(गांधीजी की मौत से प्रभावित होकर)

दर्दो-ग़मे-हयात का दरमां1 चला गया
वह ख़िज़्रे-अस्रो – ईसीए-दौरां2 चला गया

हिन्दू चला गया, न मुसलमां चला गया
इंसां की जुस्‍तुजू में इक इंसां चला गया

रक़्सां चला गया, न ग़ज़लख़्वां चला गया
सोज़ो-गुदाज़ो-दर्द में ग़लतां3 चला गया

बरहम है ज़ुल्फ़े -कुफ़्र तो ईमां है सरनिगूं
वह फ़ख़्रो-कुफ़्रो-नाज़िशे-ईमां चला गया

बीमार ज़िन्दगी की करे कौन दिलदही
नब्बा ज़ो-चारासाज़े-मरीज़ां चला गया

किसकी नज़र पड़ेगी अब ”इसियां”4 पे लुत्फ़म की
वह महरमे-नज़ाकते-इसियां चला गया

वह राज़दारे-महफ़िले-यारां नहीं रहा
वह ग़मगुसारे – बज़्मे – हरीफ़ां चला गया

अब काफ़िरी में रस्मोस-रहे-दिलबरी नहीं
ईमां की बात यह है कि ईमां चला गया

इक बेखुदे-सुरूरे-दिलो-जां नहीं रहा
इक आशिक़े-सदाक़ते-पिन्हां चला गया

बा चश्मेआ-नम है आज जुलैख़ाए-कायनात
ज़िन्दांशिकन वह यूसुफ़े-ज़िन्दांत चला गया

अय आरज़ू वह चश्म‍:ए-हैवां न कर तलाश
ज़ुल्मात से वह चश्मन:ए-हैवां चला गया

अब संगो-ख़िश्तोश-ख़ाको-ख़ज़फ़सर बलन्दं हैं
ताजे-वतन का लाले – दरख़्शा चला गया

अब अहिरमन5 के हाथा में है तेग़े – ख़ूंचकां
खुश है कि दस्तो -बाज़ुए-यज़दां चला गया

देवे-बदी से मारिक:ए-सख़्त ही सही
यह तो नहीं कि ज़ोरे-जवानां चला गया

क्यों अहले-दिल में जज़्ब:ए-ग़ैरत नहीं रहा
क्यों अज़्मे-सरफ़रोशिए-मर्दां चला गया

क्यों बाग़ियों की आतिशे-दिल सर्द हो गयी
क्यों सरकशों का जज़्ब:ए-पिन्हां चला गया

क्यों वह जुनूनो-जज़्ब:ए-बेदार मर गया
क्यों वह शबाबे-हश्र बदामां चला गया

ख़ुश है बदी जो दाम यह नेकी पे डाल के
रख देंगे हम बदी का कलेजा निकाल के


1.इलाज़
2.जमाने का पथ प्रदर्शक और समय का उपचार करने वाला
3.डूबा हुआ
4.पाप गुनाह
5.बदी का देवता

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