रात का रुदन सुना है कभी ! | भारती सिंह
रात का रुदन सुना है कभी ! | भारती सिंह

रात का रुदन सुना है कभी ! | भारती सिंह

रात का रुदन सुना है कभी ! | भारती सिंह

रात का रुदन सुना है कभी !
सुनो ना तुम
रात का रुदन
उसके बिखरने का रुदन
कलियों का विस्तार न हो पाने का रुदन
पाखी का भोर की प्रतीक्षा में आँखों का रुदन
जुगनुओं के भटकने का रुदन
नदी में गुम मछलियों का रुदन
सुनो ना तुम
गीता में कृष्ण का रुदन
कृष्ण की हथेलियों से निकला आशीर्वाद का रुदन
कुरुक्षेत्र में प्रतीक्षित शांति का रुदन
सुना है कभी !
फसलों के पकने पर किसान का रुदन
एक बार सुनो ना तुम !
अपने हृदय में मचे हाहाकार का रुदन
जीवन से कुछ खोए गीतों का रुदन
प्रकृति की गोद से मिटते अनुराग का रुदन
तुम सुनो तो सही… !

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *