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मेरा एकांत | भारती सिंह

मेरा एकांत | भारती सिंह मेरा एकांत | भारती सिंह एक-एक शब्दों कोआजमाइशों के साथउन्हें पलकों से तराशते हुएजोड़ती हूँ एक मुकम्मल फसानाचाहत है कि वहाँ रहेमेरी सरगोशियाँ और तन्हाइयाँसंग-साथ होकरपरस्परदरवाजे पर लिख छोड़ूँएक शब्द‘एकांत’न हो वहाँ अक्सरउल्लास का आना जानादे खुशियाँ दस्तक कभी-कभारभीतर की गरमाई कोन छू जाएहल्की-सी भी पुरवाईहो सब कुछ इस ढंग […]