पुराना नया | कुमार विक्रम
पुराना नया | कुमार विक्रम

पुराना नया | कुमार विक्रम

पुराना नया | कुमार विक्रम

पुरानी पड़ती चीजें 
दरअसल पुरानी होती नहीं हैं 
बल्कि किसी नए भेस में 
वो हमसे मिलती जुलती रहती हैं 
ताकि हम उन्हें नया समझ 
उनका सहर्ष आलिंगन कर लें 
कुछ वैसे ही जैसे 
जिन परंपराओं को हमने समझा 
कि हमने खारिज कर दिया था 
वो पुनः धौंस जमाने की आस में 
हमारे आँगन में उगने की 
कोशिश करती रहती हैं 
मानो घर का वो कूड़ा 
जो घर साफ कर हम 
बगल गली के कूड़ेदान में फेंक आते हैं 
वापिस उड़-उड़कर 
कभी धूल बनकर 
कभी कंकर बनकर 
कभी मकड़ी के जालों के रूप में 
कभी परिचित लम्हों की 
अपरिचित स्मृतियों के परिधान में 
दरवाजे के नीचे से 
बरसात में खुली रह गई खिड़कियों से 
हमारी बंद आँखों के सामने 
घर में जमा हो जाता है – 
कहतें हैं जो नए और पुराने का 
फर्क जानते हैं 
वो इन धूल और मिट्टी को 
अपनी आँखों में नहीं झोंकते हैं 
और रह रह कर उन्हें 
पूरी शालीनता और तन्मयता से 
वापिस और बार-बार 
गुजर चुके वक्त के कूड़ेदान में 
फेंकते रहते हैं 
कुछ वैसे ही जैसे 
कोई सभ्य और समझदार किराएदार 
अपने नए पते पर आए 
पुराने किराएदारों की चिट्ठियाँ 
बिना खोले डाकिए को विनम्रतापूर्वक 
लौटाता रहता है

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