प्रेम | पंकज चतुर्वेदी
प्रेम | पंकज चतुर्वेदी

प्रेम | पंकज चतुर्वेदी

प्रेम | पंकज चतुर्वेदी

तुम्हारे रक्त की लालिमा से 
त्वचा में ऐसी आभा है 
पानी में जैसे 
केसर घुल जाता हो

आँखें ऐसे खींचती हैं 
कि उनकी सम्मोहक गहनता में 
अस्तित्व डूबता-सा लगे 
अपनी सनातन व्यथा से छूटकर

भौंहों में धनुष हैं 
वक्ष में पराग 
तुम्हारी निष्ठुरता में भी 
हँसी की चमक है 
अवरोध जैसे कोई है नहीं 
बस बादलों में ठिठक गया चंद्रमा है

तुममें जो व्याकुलता है 
सही शब्द 
या शब्द के सौंदर्य के लिए 
वही प्रेम है 
जो तुम दुनिया से करती हो !

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *