प्रेम की प्रतिज्ञाएँ अधूरी रहती हैं | नीलोत्पल
प्रेम की प्रतिज्ञाएँ अधूरी रहती हैं | नीलोत्पल
पूरी रात बारिश गिरती रही
मैं छू नहीं पाया
तुम्हारे छोड़े गए पत्रों में
समुद्री लहरों का तेज बहाव
और दूर तक हिलते मस्तूल
जिनका पीछा मैं जिद्दी पतंगे-सा करता हूँ
कोई मौसम समय का रेहन नहीं
सिर्फ बारिश जानती है समय का उधार
मैं पीछा करता हूँ लकड़ी के
बुझ रहे अंतिम कोयले तलक
कितना असंयमित है
अनेकों बार लहर से गिरना
यह धैर्य तुममें है, तुम जीती हो उन शब्दों को
जो मेरे नहीं
प्रेम की प्रतिज्ञाएँ अधूरी रहती हैं
तुम्हारे शब्द एक रास्ता हैं, गिरती बारिश में
गुम हो जाने का
मैं उन प्रतिज्ञाओं से होकर आता हूँ
उन गुम रास्तों से लौटता हूँ
दूर… गिरती हुई बारिश कितनी अच्छी लगती है
वह कोना भी भीग गया
जहाँ पड़े-पड़े मेरी इच्छाएँ
मृत होने से बच गई हैं
तुम्हारे प्रेम की अंतहीन बारिश
मिट्टी का अंर्तआलाप है