परवीन बाबी | जितेंद्र श्रीवास्तव | हिंदी कविता
परवीन बाबी | जितेंद्र श्रीवास्तव | हिंदी कविता

कल छपी थी एक अखबार में
महेश भट्ट की टिप्पणी
परवीन बाबी के बारे में

कहना मुश्किल है
वह एक आत्मीय टिप्पणी थी
या महज रस्मअदायगी

या बस याद करना
पूर्व प्रेमिका को फिल्मी ढंग से

उस टिप्पणी को पढ़ने के बाद पूछा मैंने पत्नी से
तुम्हें कौन सी फिल्म याद है परवीन बाबी की
जिसे तुम याद करना चाहोगी सिर्फ उसके लिए
मेरे सवाल पर कुछ क्षण चुप रही वह

फिर कहा उसने
प्रश्न एक फिल्म का नहीं
क्योंकि आज संभव हैं यदि
अपने बिंदासपन के साथ
ऐश्वर्य राय, करीना कपूर, रानी मुखर्जी
प्रियंका चोपड़ा और अन्य के साथ
नई-नई अनुष्का शर्मा रुपहली दुनिया में
तो इसलिए कि पहले कर चुकी हैं संघर्ष
परवीन बाबी और जीनत अमान जैसी अभिनेत्रियाँ
स्त्रीत्व के मानचित्र विस्तार के लिए

उन्हों ने ठेंगा दिखा दिया था वर्जनाओं को
उन्हें परवाह नहीं थी किसी की
उन्हों ने खुद को परखा था
अपनी आत्मा के आईने में
वही सेंसर था उनका

परवीन बाबी ने अस्वीकार कर दिया था
नैतिकता के बाहरी कोतवालों को
उसे पसंद था अपनी शर्तों का जीवन
उसकी बीमारी उपहार थी उसे
परंपरा, प्रेमियों और समाज की

जो लोग लालसा से देखते थे उसे
रुपहले परदे पर

वे घर पहुँच कर लगाम कसते थे
अपनी बहन बेटियों पर

परवीन बाबी अट्टहास थी व्यंग्य की
उसके होने ने उजागर किया था
हमारे समाज को ढोंग

उसकी मौत एक त्रासदी थी
उसकी गुमनामी की तरह
लेकिन वह प्रत्याख्यान नहीं थी उसके स्वप्नों की
भारतीय स्त्रियों के मुक्ति संघर्ष में
याद किया जाना चाहिए परवीन बाबी को
पूरे सम्मान से एक शहीद की तरह

यह कहते-कहते गला भर्रा गया था
पत्नी का चेहरा दुख से
लेकिन एक आभा भी थी वहाँ
मेरी चिरपरिचित आभा
जिसने कई बार रोशनी दी है मेरी आँखों को

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