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हिमपात | जीतेन्द्र श्रीवास्तव | हिंदी कविता

गिरने लगी है बर्फपूस के शुरू होते हीऔर लकड़ी के अभाव मेंबहाई जाने लगी हैं लाशेंबिना जलाए ही लोग ठकुआए हुए टुकुर-टुकुर ताक रहे हैंओरा गया है उनका विश्वासन जाने कहाँ है सरकार!