परिवर्तन | नरेश सक्सेना बरसों से बंद पड़ी हवेली मेंकोई नहीं आया थाएक दिन आई आँधीउसके साथ आई धूलसूखे हुए पत्ते और तिनके और कागज के टुकड़ेपूरी हवेली एक अजीब ताजगी से भर गई।