ओ मेरे गीत
ओ मेरे गीत

ओ मेरे गीत! किसलिए तुम्‍हारा यह चीखना-चिल्‍लाना?
क्‍या तुम्‍हारे पास देने को कुछ बचा नहीं?
खामोशी के नीले धागों को
मैं सीख रहा हूँ बुनना अपने घुँघराले बालों में।

चाहता हूँ खामोश और सख्त रहना।
सीख रहा हूँ चुप रहना तारों से।
अच्‍छा रहे सड़क पर विलो के पेड़ की तरह
पहरा देना नींद में सोये रूस का।

अच्‍छा लगता है अकेले टहलना घास पर
पतझर की इस चाँदनी रात में
और रास्‍ते में पड़ी गेहूँ की बालियाँ
इकट्ठा करना अपनी खाली थैली में।

पर इन खेतों का नीलापन भी कोई इलाज नहीं।
ओ मेरे गीत! झकझोरने लग जाऊँ क्‍या?
सुनहले झाडू से साँझ
बुहार रही है मेरा रास्‍ता।

अच्‍छी लगती है जंगल के ऊपर
हवा में डूबती यह आवाज :
‘तुम जो जिंदा हो जियो उत्‍साह-उल्‍लास के बिना
जैसे पतझड़ के मौसम में लाइम पेड़ का सोना।’

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