नीली स्याही | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता
नीली स्याही | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता

नीली स्याही में
भीगे हुए हैं
कितने रंग के दुख

कितनी उदासी-टूटन-हताशा,
पीड़ा और प्रेम
नीली स्याही में है
गुंजायमान
(जिसका कि सिर्फ नीला रंग नहीं है)

पंक्तित इस नीलाभ में
शामिल है
कितने तरह की चीजों की आवाज
और चुप्पी

आखिर –
नीला ही कितना बचा होगा
नीली स्याही में
जब उड़-सिकुड़ रही हो रंगत
जीवन से लगातार।

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