नफरत | नरेश अग्रवाल
नफरत | नरेश अग्रवाल

नफरत | नरेश अग्रवाल

नफरत | नरेश अग्रवाल

फँसने के बाद जाल में 
कितना ही छटपटा ले पक्षी 
उसकी परेशानी हमेशा बनी रहेगी 
और उड़ान छीन लेने वाले हाथों से 
प्राप्त हुआ भोजन भी स्वीकार करना होगा। 
जिसने हमें जल पिलाया 
भूल जाते हैं हम उसके दिए सारे क्लेश 
और जो सबसे मूल्यवान क्षण हैं खुशियों के 
वे हमेशा हमारे भीतर हैं 
बस हमें लाना है उन्हें 
कोयल की आवाज की तरह होंठों पर। 
जल की शांति हमें अच्छी लगती है, 
जब बहुत सारी चीजें प्रतिबिंबित हो जाती हैं उसमें तब 
लहरें नफरत करती हुई आगे बढ़ती हैं, 
किनारे पर आकर टूट जाता है उनका दंभ। 
धीरे-धीरे सब कुछ शांत 
चुपचाप जलती मोमबत्ती में 
मेरे अक्षर हैं इस वक्त कितने सुरक्षित।

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